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नहीं विसरुं विसरामी, जिणंदवर . पार्श्व ॥१॥ .... पार्श्व को जपते, कर्म को खपते, बनते अमरपद धामी, जिणंदवर . पार्श्व ।।२।।
प्रभु के मान से क्रोड मंगल है; पद पद ऋद्धि हामी, जिणंदवर . पार्श्व ।।३।।
प्रात: पावन नाम सिमरतां, पूरत है मन कामी, जिणंदवर . पार्श्व ॥४॥
जादव गण की जरा हटाइ; हर दो हमरी स्वामी, जिणंदवर . पार्श्व ।।५।।
पार्श्व सिमरते वो नहीं डरते, जिन गुण गण को पामी, जिणंदवर . पार्श्व ॥६॥
आत्म-कमल सुम लब्धिमाला; खूब सुगंधी जामी, जिणंदवर . पार्श्व ॥७॥
श्री नाकोड़ा मंडन श्री पार्शजिन स्तवन * प्रभु पारस को दिल से भुलाना नहि
नाकोड़ा मंडन भवि अध खंडन प्रभु सेवा में दिलको मिलाना सही ॥१॥
वामनंदन शीतल चंदन इस दुनिया से हमको छुड़ाना सही ॥२॥
आतमारामी दिल विसरामी प्रभु अन्तर के गुण में झुनाना सही ॥३॥
शिवगति गामी गुणगण धामी प्रभु दुःखियों के दुःख को मिटाना सही ॥४॥
लूं जगव्यापी कर्म को कापी सूरि लब्धि को भवसे तीराना सही ॥५॥
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