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भगवान् महावीर की निर्वाण भूमि ‘पावा'
की पहचान
ओम प्रकाश लाल श्रीवास्तव
चौबीसवें तीर्थंकर भगवान् महावीर का पावा में निर्वाण हुआ था। मल्लगण की एक शाखा की राजधानी पावा थी और दूसरी की कुशीनारा। पुरातात्त्विक साक्ष्यों के आधार पर कुशीनारा की पहचान वर्तमान कुशीनगर से की जा चुकी है, लेकिन पावा की पहचान के सम्बन्ध में विद्वानों में मतभेद है। पावा की पहचान के सन्दर्भ में पावापुरी (नालंदा-बिहार), पडरौना एवं कुशीनगर जनपद में स्थित पपउर, सठियाँव-फाजिलनगर तथा उसमानपुर की विभिन्न विद्वानों द्वारा चर्चा की गयी है। जहाँ तक पावा के रूप में इन स्थलों की पहचान की बात है, पावापुरी, पडरौना और पपउर के बारे में विस्तृत विवेचन किया जा चुका है। अत: पुन: उनका उल्लेख आवश्यक नहीं है। उल्लेखनीय है कि इन स्थलों से कोई पुरातात्विक साक्ष्य उपलब्ध नहीं हुआ है, जिसके आधार पर इनमें से किसी को पावा स्वीकार किया जा सके।
- सठियांव के पार्श्व में फाजिलनगर के उत्खनन में गुप्तकालीन ब्राह्मी लिपि में 'श्रेष्ठियामाग्रहारस्य'२ लेखयुक्त एक मृण्मुद्रा प्राप्त हुई है जिससे स्पष्ट हो चुका है कि वर्तमान काल का सठियाँव गुप्तकाल में श्रेष्ठिग्राम था और फाजिलनगर उसका अग्रहार। इस सन्दर्भ में यह भी उल्लेखनीय है कि जैन ग्रन्थों में भगवान् महावीर के चतुर्मासों की सूची प्रस्तुत करते हुए बताया गया है कि उन्होंने राजगृह में ११, वैशाली में ७, वाणिज्य ग्राम में ५, मिथिला में ४, नालन्दा में २ तथा पावा में १ चातुर्मास व्यतीत किया था। इससे स्पष्ट है कि वाणिज्य-ग्राम और पावा दो अलग-अलग स्थल थे। उल्लेखनीय है कि ई०पू० छठवीं शताब्दी का यह वाणिज्य ग्राम गुप्तकाल का श्रेष्ठिग्राम था जो वर्तमान में सठियाँव है। अत: सठियाँव और फाजिलनगर की पहचान पावा के रूप में नहीं की जा सकती।
उसमानपुर फाजिलनगर से लगभग ५-६ कि०मी० दक्षिण है। यहाँ का प्राचीन टीला लगभग २-३ कि०मी० की परिधि में विस्तृत है। प्राचीन मृदभाण्डों के साथ
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