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वि०सं० १५७२ में जिनवचनरलकोश के रचनाकार राजहंस, २६ हर्षतिलक के शिष्य राजहंस,२७ सागरतिलकसूरि के शिष्य एवं पार्श्वनाथफाग तथा सीतासतीचौपाई (वि०सं० १६११) आदि के कर्ता समयध्वज,२८ भुवनभानुकेवलीचरित (वि० सं० १७वीं शती) के कर्ता लक्ष्मीलाभ, २९ मृगांकलेखाचौपाई (वि०सं० १६६३) के कर्ता भानुचन्द्र,३० वि०सं० १७२३ में दशवैकालिकस्तवकटीका के रचनाकार चारित्रचन्द्र३१ आदि भी खरतरगच्छ की इसी शाखा से ही सम्बद्ध थे। खरतरगच्छ की लघुशाखा की पूर्वोक्त तालिका के मुनिजनों से इन रचनाकारों का क्या सम्बन्ध रहा, यह ज्ञात नहीं होता। वर्तमान में इस शाखा का अस्तित्त्व नहीं है। सन्दर्भ १. मुनि जिनविजय, संपा० खरतरगच्छबृहद्गुर्वावली, सिंघी जैन ग्रन्थमाला,
ग्रन्थांक ४२, बम्बई १९५९ ई०, पृ० ८८-९६. २. महोपाध्याय विनयसागर, शासनप्रभावकआचार्यजिनप्रभ और उनका साहित्य,
अभय जैन ग्रन्थमाला, पुष्प ३०, जयपुर १९७५ ई०, पृष्ठ ९० और आगे। मुनि जिनविजय, सम्पा० विविधतीर्थकल्प, सिंघी जैन ग्रन्थमाला, ग्रन्थांक ६, शान्तिनिकेतन, १९३३ ई० विनयसागर, पूर्वोक्त, पृष्ठ ९८ और आगे. गुलाबचन्द्र चौधरी, जैनसाहित्य का बृहद्इतिहास, भाग ६, पार्श्वनाथ विद्याश्रम ग्रन्थमाला, ग्रन्थांक २०, वाराणसी १९७३ ई०, पृष्ठ २११. बुद्धिसागरसूरि, सम्पा०, जैनधातुप्रतिमालेखसंग्रह, भाग २, अध्यात्म ज्ञान
प्रसार मण्डल, पादरा १९२४ ई०, लेखांक ६१७. ७. विनयसागर, पूर्वोक्त, पृष्ठ ७८-७९. ८. वही, पृष्ठ ८३-८४. ९. वही, पृष्ठ ८२. १०. A.P. Shah, Ed. Catalogue of Sanskrit and Prakrit Mss, Part IV, L.D.
Series No. 20, Ahmedabad 1968 A.D., p. 5, No. 55. ११. मुनि जयन्तविजय, सम्पा० अर्बुदप्राचीनजैनलेखसन्दोह, विजयधर्मसूरि
ग्रन्थमाला, ग्रन्थांक ४०, उज्जैन वि०सं० १९९४, लेखांक २००. १२. अगरचन्द नाहटा, भँवरलाल नाहटा, सम्पा० मणिधारीजिनचन्द्रसूरिअष्टम
शताब्दीस्मृतिग्रन्थ, मणिधारी जिनचन्द्रसूरि अष्टम शताब्दी समारोह समिति, ५३, रामनगर, दिल्ली १९७१ ई०, भाग २, "खरतरगच्छीयसाहित्यसूची", पृष्ठ १६.
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