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________________ भगवती के अनुसार ज्ञान का विभाजन निम्न प्रकार से है ज्ञान आभिनिबोधिक श्रुत अवधि मनापर्यव केवल अवग्रह ईहा अवाय धारणा भगवती में ज्ञान के इन प्रकारों का निरूपण करने के पश्चात् ग्रन्थ में कहा गया है कि राजप्रश्नीय में जो ज्ञान के भेद बताये गये हैं उसी प्रकार यहाँ भी कहना चाहिए। अत: राजप्रश्नीय२५ के अनुसार ज्ञान के भेद इस प्रकार हैं ज्ञान ___ आभिनिबोधिक श्रुत अवधि मनःपर्यव केवलज्ञान अवग्रह ईहा आवाय धारणा राजप्रश्नीय में भगवती में वर्णित सूची को बताते हुए अवग्रह,श्रुत, अवधि, मनापर्यव के दो-दो प्रकार बताते हुए केवलज्ञान सहित वर्णन नन्दीसूत्र के अनुसार जानने का निर्देश किया गया है। जैसाकि पं० दलसुखभाई मालवणिया ने भी लिखा है कि सूत्रकार ने आगे का वर्णन राजप्रश्नीय से पूर्ण कर लेने की सूचना दी है और राजप्रश्नीय (सूत्र १६५) को देखने पर मालूम होता है कि उसमें पूर्वोक्त नक्शे के अलावा अवग्रह के दो भेदों का कथन करके शेष की पूर्ति नन्दीसूत्र से कर लेने की सूचना दी है। २६ नन्दीसूत्र के अनुसार ज्ञान का विभाजन निम्नलिखित है ज्ञान आभिनिबोधिक श्रुत अवधि मनापर्यव केवल प्रत्यक्ष परोक्ष. - इन्द्रिय प्रत्यक्ष नोइन्द्रिय प्रत्यक्ष आभिनिबोधिक श्रोत्रेन्द्रिय अवधि चक्षुरिन्द्रिय मनःपर्यव श्रुतनिःसृत अश्रुतनिःसृत घ्राणेन्द्रिय केवल जिह्वेन्द्रिय स्पर्शेन्द्रिय ४ व्यंजनावग्रह ६ अर्थावग्रह Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525040
Book TitleSramana 2000 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2000
Total Pages232
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size10 MB
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