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________________ सावधानी वर्तमान में यन्त्र-मन्त्र देने वालों की बहुतायत हो गई है। किसी भी कैलेण्डर, पुस्तिका, पत्रक, जन्त्री आदि में कई चमत्कारी मन्त्रों को देखा जा सकता है; लेकिन छोटे-छोटे से मन्त्रों में भी कई अशुद्धियाँ देखीं गईं हैं। ऐसे में अशुद्ध मन्त्र के जाप से निष्फलता के साथ-साथ विपरीत परिणाम की भी सम्भावना रहती है। किसी मन्त्र साधना के लिए पूर्ण विधि की जानकारी होना नितान्त आवश्यक है। एक सामान्य बात यह अवश्य ध्यान में रखी जाती है कि जिस मन्त्र के अन्त में 'नमः' शब्द (इसे पल्लव कहते हैं) आता (लगा) हो वह कदाचित् अशुद्ध भी हो तो भी दुष्परिणाम होने की आशंका नहीं रहती; किन्तु जिस मन्त्र के अन्त में 'वषट्', 'वौषट्' 'ठः ठः', 'घे घे', 'हुँ' और 'फट' पल्लव लगा हो उसे पूर्ण जानकारी के अभाव में जपना नहीं चाहिए, अन्यथा किसी भी त्रुटि से भयंकर दुष्परिणाम हो सकता है। यन्त्र कुछ विशिष्ट प्रकार के अक्षर, शब्द व मन्त्र रचना जो कोष्ठक आदि बनाकर उनमें चित्रित किए जाते हैं, यन्त्र कहलाते हैं। मन्त्र शास्त्र के अनुसार इनमें कुछ अचिंत्य शक्ति मानी गयी है। इसीलिए जैन सम्प्रदाय में इन्हें पूजा व विनय का विशेष स्थान प्राप्त है। मन्त्र सिद्धि, पूजा, प्रतिष्ठा व यज्ञ-विधान आदि में इनका बहुलता से प्रयोग किया जाता है। अनेक यन्त्रों का निर्माण प्रयोजनवश उनकी विधि के अनुसार किया जाता है। (जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश)। यन्त्रों से लाभ प्राप्त करने की प्रथा प्राचीन काल से चली आ रही है। दुकान के दरवाजे और दीपावली के समय यन्त्र लिखने की प्रथा प्राय: देखने में आती है। मन्त्र साधन या मण्डल विधान के समय दिशाबन्धन के लिए हाथ में यन्त्र बनाते हैं। मुनि दीक्षा के समय आचार्य दीक्षार्थी के हाथों और सिर पर यन्त्र लिखते हैं। यदि यन्त्र विधिपूर्वक लिखा जाय तो प्रसव-पीड़ा भोग रही स्त्री को यन्त्र दिखाने मात्र से प्रसव हो जाता है। किसी को डाकिनी-शाकिनी सताती हो तो यन्त्र को दिखाने मात्र से उसे आराम हो जाता है, इत्यादि चमत्कारपूर्ण यन्त्र हैं। मन्त्र साधना के समय बीजाक्षर लिखकर यन्त्र समक्ष रखने का निर्देश है। इससे मन्त्र साधना के समय विघ्न-बाधाएँ नहीं आती हैं। मन्दिर या मकान की नीव में मातृका यन्त्र अवश्य रखना चाहिए। __ यन्त्र लेखन में लेखन सामग्री, दिशा, दिन, आचार-विचार, कलम की लम्बाई, अंकों के पहले और बाद में लिखने का क्रम, किस तरह के मन्त्र के लिए कौन सा आकार आदि का विशेष ध्यान रखा जाता है। यन्त्र, यन्त्र लेखन विधि के अच्छी तरह से जानकार व्यक्ति से ही लिखवाना या लेना चाहिए। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525040
Book TitleSramana 2000 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2000
Total Pages232
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size10 MB
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