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________________ जैन दर्शन में 'निक्षेप' : एक विवेचन - डॉ० श्रीप्रकाश पाण्डेय जैन दर्शन में वाच्यार्थ का निर्धारण करने के लिए दो प्रमुख सिद्धान्त प्रस्तुत किये गये हैं १. नयसिद्धान्त और २. निक्षेपसिद्धान्त। दोनों सिद्धान्तों का मूलभूत उद्देश्य यही है कि श्रोता वक्ता के द्वारा कहे गए शब्दों अथवा कथनों का सही अर्थ जान सके। जैसा कि नय की परिभाषा ही की गयी है कि 'वक्तुरभिप्राय: नय'। अत: वक्ता के आशय या कथन को तात्कालिक सन्दर्भ में सम्यक् प्रकार से समझने की पद्धति है- नय सिद्धान्त। निक्षेप जैनधर्म का एक पारिभाषिक एवं लाक्षणिक शब्द है, जिसका पदार्थबोध के लिए परिज्ञान अत्यन्त आवश्यक है। निक्षेप की अनेक व्याख्याएँ विभिन्न ग्रन्थों में मिलती हैं। जीतकल्पभाष्य में 'नि' शब्द के तीन अर्थ लिए गए हैं- ग्रहण, आदान और आधिक्य। 'क्षेप' का अर्थ है- प्रेरित करना। अर्थात् जिस वचन पद्धति में नि/अधिक क्षेप/विकल्प है वह निक्षेप है। सूत्रकृताङ्गचूर्णि में जिनदासगणि महत्तर ने निक्षेप की परिभाषा देते हुए कहा है कि जिसका क्षेप/स्थापन नियत और निश्चित होता है वह निक्षेप है। दूसरे शब्दों में जिसके द्वारा वस्तु का ज्ञान या उपचार से वस्तु में जिन प्रकारों से आक्षेप किया जाय- वह निक्षेप है। ___निक्षेप के द्वारा वक्ता के प्रकथन में अप्रस्तुत अर्थ का निषेध कर प्रस्तुत अर्थ का निरूपण किया जाता है। आचार्य यशोविजय ने निक्षेप की अपनी परिभाषा में कहा है कि- जिससे प्रकरण (सन्दर्भ) आदि के अनुसार अप्रतिपत्ति आदि का निराकरण होकर शब्द के वाच्यार्थ का यथास्थान विनियोग होता है, ऐसी रचना विशेष को निक्षेप कहा गया है। वस्तुत: शब्द का प्रयोग वक्ता ने किस अर्थ में किया है इसका निर्धारण करना ही निक्षेप का कार्य है। जैसे हम राजा राज्य करने वाले शासक, राजा नामधारी व्यक्ति, भूतपूर्व राजा आदि सभी को राजा कहते हैं, किन्तु किस प्रसङ्ग में शब्द किस अर्थ में प्रयुक्त किया गया है, यह स्पष्ट होना आवश्यक है। निक्षेप हमें अर्थनिर्धारण की प्रक्रिया को समझाता है। समस्त व्यवहार या ज्ञान के लेन-देन का मुख्य साधन भाषा है। भाषा शब्दों से बनती है। एक ही शब्द प्रयोजन एवं प्रसंग के अनुसार अनेक अर्थों में प्रयुक्त होता है- जैसे- सैन्धव लाओ। भोजन करते समय यदि ‘सैन्धव लाओ' कहा जाय तो वहाँ 'सैन्धव' शब्द का अर्थ नमक, एवं यदि युद्ध के समय 'सैन्धव Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525040
Book TitleSramana 2000 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2000
Total Pages232
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size10 MB
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