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________________ में संस्कृत, प्राकृत, अपभ्रंश, गुजराती, कन्नड़ आदि भाषाओं में लिखित प्राचीन जैन साहित्य और परम्परा को प्रकाश में लाने का भरपूर प्रयत्न किया । यह उनके ही श्रम का फल है कि आज जैन साहित्य और संस्कृति जैनेतर साहित्य और संस्कृति के साथ सशक्त स्थिति को लेकर बैठी हुई है। कालदोष के प्रभाव के कारण और समाज की संकीर्णता के साथ ही दूरदृष्टि के अभाव के कारण प्राचीन पण्डित परम्परा की अक्षुण्णता खतरे में पड़ गई है । आज विद्वानों में तलस्पर्शिता का अभाव हो रहा है जो पण्डित परम्परा के साथ थी। दस वर्ष के बाद तो स्थिति ऐसी आयेगी कि बची-खुची परम्परा भी देखने नहीं मिलेगी। ―― प्राचीन परम्परा से जुड़े हुए एक और व्यक्तित्व हमारे सामने हैं। वे हैंश्री पं० श्री अमृतलाल शास्त्री, वाराणसी । स्वच्छ धुली हुई धोती पर रंगीन कुर्ता. तेजस्वी चेहरे पर सुनहरा चश्मा, चश्मे के भीतर आँखों से टपकता स्नेह का फौव्वारा, चप्पल में सजी गति में अजीब फुर्ती, बोलने में उत्साह और व्यवहार में मृदुता और कर्तव्यपरायणता के साथ संकोच से दबा व्यक्तित्व | बुन्देलखण्ड की माटी की सौगन्ध लेकर गंगा की पवित्र धारा में अवगाहन करने की प्रतिज्ञा लिये पं० जी ने वाराणसी को सन् १९३४ में अपना धाम बनाया। गंगा के किनारे खड़े उत्तुंग मानस लिये स्वाद्वाद महाविद्यालय के प्रवेश ने शास्त्री और आचार्य कराया और अपने ही पुस्तकालय की गोद में रखकर अध्यापन कार्य सौंप दिया। उनके मधुर स्वभाव ने छात्रों के बीच उन्हें 'शास्त्री जी' बना दिया । अध्ययन-अध्यापन की प्रवृत्ति शास्त्री जी को सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय ले गयी जहाँ वे लगभग दो दशक तक जैन दर्शन पढ़ाते रहे और वहाँ से निवृत्त होने पर ब्राह्मी विद्यापीठ, लाडनूं ने आपको आमन्त्रित कर लिया। वहाँ भी उन्होंने बीस बसन्त गुजारे। उनकी इस दीर्घ अध्यापन-परम्परा में शिस्यों की एक दीर्घ शृङ्खला खड़ी हो गई। मुझे भी उनका शिष्य होने का सौभाग्य प्राप्त है। आज वे अपने जीवन के सन्ध्याकाल में खड़े हु हैं । बहुत सारी स्मृतियों के पुलिन्दे उनके साथ जुड़े हुए हैं। शरीर ने अपना प्रभाव अवश्य दिखाया है पर उनकी स्मृति अभी भी पूर्ववत् है । उनके संस्मरणों को यदि एकत्रित किया जाये तो लगभग पूरी बीसवीं शताब्दी के जैन समाज का चित्रण सामने आ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525039
Book TitleSramana 1999 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year1999
Total Pages202
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size8 MB
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