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________________ ५२ है कि श्वेताम्बराम्नाय मौर्यपुत्र को एक ही गणधर मानती है पर दिगम्बराम्नाय उसे मौर्य । और पुत्र नाम के पृथक-पृथक दो गणधर बताती है।३७ चतुर्विध संघ की स्थापना ग्यारह गणधरों के शिष्य बन जाने पर महावीर भगवान् की लोकप्रियता और विश्रुति और भी अधिक बढ़ गई। साथ ही उनके अनुयायियों की संख्या में भी वृद्धि होना प्रारम्भ हो गया। यह देखकर भगवान् ने नव गणों की स्थापना की और उनका उत्तरदायित्व पूर्वोक्त गणधरों को सौंप दिया। इसके उपरान्त उन्होंने अपने अनुयायियों को भी चार श्रेणियों में विभाजित कर दिया- श्रमण, श्रमणी, श्रावक और श्राविका। आर्यिकाओं के नेतृत्व श्रमणी चन्दनबाला को सौंपा गया। इस प्रकार भगवान् महावीर ने वैशाख शुक्ल एकादशी के दिन चतुर्विध संघ की स्थापना की। बौद्ध साहित्य में संघी, गणी, गणाचरिय, तित्थकर, सव्वञ्ज आदि सम्माननीय शब्दों से उनका अनेक बार स्मरण किया गया है। धर्मप्रचार और वर्षावास चतुर्विध संघ की स्थापना के उपरान्त भगवान महावीर ने सर्वजनहिताय और सर्वजनसुखाय धर्मप्रचार करना प्रारम्भ किया ताकि सांसारिक प्राणी भौतिकता से दर हटकर आत्म-कल्याण कर सकें। जनकल्याणकारिता के कारण ही उन्हें अर्हन्त जिन कहा गया है और पंच परमेष्ठियों में प्रथम परमेष्ठी के अन्तर्गत उनका नाम रखा गया है। केवलज्ञान प्राप्ति के बाद की भी जीवन-घटनाओं का विवरण दिगम्बर साहित्य में समुचित और सुसम्बद्ध नहीं मिलता जबकि श्वेताम्बर साहित्य में उसे किसी सीमा तक क्रमबद्ध कर दिया गया है। दोनों परम्पराओं के आधार पर भगवान् महावीर के धर्मप्रचार और वर्षावास के प्रमुख स्थल निम्न प्रकार से निश्चित किये जा सकते हैं १. मध्यमपावा, राजगृह (वर्षावास)। २. ब्राह्मणकुण्ड, क्षत्रियकुण्ड, वैशाली (वर्षावास)। ३. कौशाम्बी, श्रावस्ती, वाणिज्यग्राम (वर्षावास)। ४. राजगृह (वर्षावास)। ५. चम्पा, वीतभय, वाणिज्यग्राम (वर्षावास)। ६. वाराणसी, आलंभिया, राजगृह (वर्षावास)। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525038
Book TitleSramana 1999 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year1999
Total Pages200
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size9 MB
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