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________________ प्रधान सम्पादकीय श्रमण पिछले पचास वर्षों से सतत् प्रकाशित हो रहा है। इस बीच उसने जैन संस्कृति से सम्बद्ध प्रायः सभी पक्षों पर प्रामाणिक शोध आलेख प्रस्तुत किये हैं जिन्हें विद्वानों ने भरपूर सराहा है। विद्वज्जगत् में ऐसे आलेखों पर खूब मन्थन भी हुआ है जिससे शोध के नये आयाम भी खुले हैं। मैंने पार्श्वनाथ विद्यापीठ के प्रोफेसर एवं निदेशक के रूप में अभी-अभी कार्यभार सम्भाला है। पर्युषण पर्व नजदीक था इसलिए उसकी उपयोगिता को ध्यान में रखकर हमने श्रमण का यह अङ्क 'पर्युषण विशेषांक' के रूप में प्रकाशित किया है। इसमें पर्युषण पर एक समग्र पुस्तक हम पाठकों के समक्ष प्रस्तुत कर रहे हैं। आशा है, पाठक इसे स्वीकार करेंगे। भविष्य में भी इसी प्रकार श्रमण को अधिक सशक्त और उपयोगी बनाने की दृष्टि से हम किसी विषय विशेष पर समग्रता की पृष्ठभूमि में सामग्री प्रस्तुत करने का प्रयत्न करेंगे। इस अङ्क से हम गुजराती भाषा के भी आलेख प्रस्तुत कर रहे हैं। इस तरह अब श्रमण तीन भाषाओं में पाठक के सामने आया करेगा। इसमें सभी का सहयोग अपेक्षित एवं प्रार्थित है। Jain Education International For Private & Personal Use Only भागचन्द्र भास्कर प्रधान सम्पादक www.jainelibrary.org
SR No.525038
Book TitleSramana 1999 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year1999
Total Pages200
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size9 MB
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