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________________ पदार्थ विज्ञान और उसकी विवेचन-शैली : ६९ उमास्वामी ने हिंसादि को स्वर्ग और मोक्ष की प्रयोजक क्रियाओं का विनाश करने वाला तथा निन्दनीय और दुःख रूप माना है । ७ साथ ही प्राणी मात्र में मैत्री, गुणाधिक में प्रमोद, कष्ट में पड़े जीवों के प्रति करुणाभाव और अविनयी जीवों के प्रति माध्यस्थ भावना बनाये रखने का उल्लेख किया है ८ जिसे पूज्य वर्णी जी ने अपने जीवन में अक्षरश: उतारा है। संसार और भोगों से विरक्त होने के लिये पूज्य वर्णीजी ने शरीर की मलिनता और संसार के स्वरूप का चिन्तन किया और मन्थन स्वरूप जो नवनीत निकला उसका उन्होंने 'पदार्थ विज्ञान' नामक ग्रन्थ में संचय करने का महत्त्वपूर्ण कार्य किया है। | पूज्य वर्णीजी की पावन लेखनी से प्रसूत 'पदार्थ विज्ञान' नामक पुस्तक का सम्बन्ध- " स्कूली पाठ्यक्रमों में आने वाले पदार्थ विज्ञान (फिजिक्स) से नहीं है। फिजिक्स की सीमाओं का अतिक्रमण करके यह पुस्तक पदार्थ के उन पक्षों और रहस्यों का उद्घाटन करती है, जो वास्तव में पदार्थ को एक ओर फिजिक्स या आधुनिक भौतिक विज्ञान से जोड़ते हैं तो दूसरी ओर उसे व्यावहारिक दर्शन से, संचेतना को जागृत करने राले धर्म से और गूढ़ रहस्यों के उस व्यापक संसार से जहाँ सब कुछ ज्ञान - ज्ञेय की सत्ता में एकात्मक होकर आध्यात्मिक बन जाता है । " ९ पूज्य वर्णीजी ने पदार्थ विज्ञान नामक ग्रन्थ उपदेशात्मक शैली में लिखा है, जो कुल बारह अध्यायों एवं १४६ उपशीर्षकों में विभाजित हैं। इसमें सर्वप्रथम धर्म का स्वरूप बतलाया है, जिसकी प्रारम्भ में चर्चा की जा चुकी है । पुनः पदार्थ - सामान्य और पदार्थ - विशेष का विवेचन है। इसी क्रम में जीव पदार्थ का सामान्य और विशेष परिचय दिया गया है तथा जीव के धर्म और गुणों की चर्चा की है । तदनन्तर अजीव पदार्थ की सामान्य चर्चा करके उसके पुद्गल, धर्म, अधर्म, आकाश और काल इन पाँच भेदों का विस्तार से विवेचन किया है । अन्त में उपसंहार के माध्यम से षड्द्रव्यों का संक्षिप्त कथन है। इस प्रकार इस ग्रन्थ में षड्द्रव्यों के रूप में प्रसिद्ध छह पदार्थों का निरूपण किया गया है। यह निरूपण वैज्ञानिक ढंग से किया गया है। द्रव्य के प्रत्येक पहलू पर गहन अध्ययन, चिन्तन और मनन करने के पश्चात् लेखक ने कलम चलाई है, जिसके परिणामस्वरूप जो भी नवनीत निकला है वह अपने आप में अखण्ड और परिपूर्ण है । विषय के प्रति श्रोता अथवा पाठक की आदि से अन्त तक रुचि बनी रहे इसके • लिये पृथक् प्रयास न करते हुए भी वे श्रोता अथवा पाठक के करीब पहुँच जाते हैं और अपनी साहित्यिक एवं सहज सूझ-बूझ के माध्यम से विषय में जान फूँक देते हैं। आधुनिक वैज्ञानिक इन द्रव्यों को किस रूप में स्वीकार करते हैं और उन्हें क्या नाम देते हैं, इनका विवेचन भी पूज्य जिनेन्द्र वर्णी जी ने किया है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525037
Book TitleSramana 1999 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year1999
Total Pages210
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size8 MB
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