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श्रमण/अप्रैल-जून/१९९९
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६. उपदेशपदवृत्ति द्वितीयो भागः, आद्य वक्तव्य (भूमिका), पृ० ६-७. ७. साहाय्यमत्र परमं कृतं विनेयेन रामचन्द्रेण।
गणिना, लेखसंशोधनादिकं शेषशिष्यैश्च।। उपदेशपदवृत्ति अन्तिम प्रशस्ति ८, पृ० ४३४. पूर्वैर्यद्यपि कल्पितेह गहना वृत्तिः ...... यत्नोऽयमास्थीयते।
- उपदेशपदवृत्ति (प्रारम्भिक), ३. ९. जैन साहित्य का बृहद् इतिहास, भाग ४, पृ० १९५. १०. वही, पृ० १९५. ११. उपदेशपद, गाथा १-२ की वृत्ति, पृ० २. १२. अइदुल्लहं च एयं चोल्लगपमुहेहि अत्थ समयंमि।
भणियं दिटुंतेहिं अहमवि ते संपवक्खामि ।।४।। चोल्लग पासग धण्णे-जुए रयणे य सुमिण चक्के य।
चम्म जुगे परमाणू- दस दिटुंता मणुयलंभे।।५।। - उपदेशपद, गाथा ४-५.' १३. उपदेशपद, गाथा ६. १४. वही, गाथा ७, पृ० २१. १५. धण्णेत्ति भरहधण्णे सिद्धत्थगपत्थखेव थेरीए।
अवगिंचण मेलणओ एमेव ठिओ मणुयलाभो।। उपदेशपद, गाथा ८. १६. रयणेत्ति भिन्नपोयस्स तेसि नासो समुद्दमझमि।
अण्णेसणंभि भणियं तल्लाहसमं खु मणुयत्तं ।। - उपदेशपद, गाथा १०. १७. उपदेशपद, गाथा ३०-३६. १८. उप्पत्तिय वेणइया कम्मय तह पारिणामिया चेव।
बुद्धि चउव्विहा खलु निद्दिट्ठा समयकेऊहिं।।।- उपदेशपद, गाथा ३८. १९. भरहसिल-पणिय-रुक्खे खड्डग-पड-सरड-काय-उच्चारे।
गय-घयण-गोल-खंभे, खुड्डग-मग्गि-त्थि-पइ-पुत्ते।।– उपदेशपद, गाथा ४०. २०. नन्दीसूत्र, गाथा ७०-७२. २१. उपदेशपद, गाथा, ५२-७९. २२. इत्थी वंतरि सच्चित्थि तुल्ल तीयादि कहण ववहारे।
हत्थाविसए ठावण गह दीहागरिसणे णाणं।। - उपदेशपद, गाथा ९३.
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