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________________ ४४ : श्रमण/अप्रैल-जून/१९९९ __ चेक सेणी मूलसिखा वर्ल्ड णिंदयं होइ । खयरं मणसिल गंधं हरिदाल सपत्त णीर खीसेवि । लेवेणा णिणासइ वरुणव फाकाय संभूय ।।१६५।। सुरवइ वारुणि मूलं गोपयमुत्तेण वढि पीवेह । साहणधम्मंकीला उवसामइ तहवि पाणेण ।।१६६ ।। पुडपविय तिहला चुण्णं लिंग सिर धरिय पुरिस रुय जाइ। पुंट जुगं जलि पिटुं लिंगे धरिएवि तं हणइ ।। १६७।। रस अंजणि अभया जलि साहण कीला पणासेइ । सुरदालि कडुव मूलं तक्क पलेवेय हुक्कहो होइ ।। १६८।। अह सरसिव कर जगुली जललेवि तिदोस पटुकरहं । पत्त कुवारि दुहाडं करिवद्धा चम्मकीलया गवइ ।। १६९।। महुजट्ठी दोरयणी महर्ड सहियावि कूठ जल जुत्तं । फेडइ तण वण आई सयरे दोसाइं सज्झइं ।। १७० ।। इंदेणि जड पय एरंडतेल सह पिय कुभंडयं हरइ । अहई सरिज लिपिट्ठा कणेणय विधियं अहवा ।। १७१।। कास जड धवासा पप्पडउउ रिंगिणि कढियए पीए। सीयला करेवि मणुवे कामुव पीडा पणासेइ ।। १७२।। पिप्पलि पिप्पलिमूलं सोंठि सम जुवंच कयपाणं । सुरही जलेण सहियं सिद्धत्थं हरइ सुरभेयं ।। १७३।। पाठाजड गोखीरे पाणे सुरभेउ णासेइ । तंदुलजलि अहिपाठा पाणेणय विद्दही हणइ ।। १७४।। महउं सहि इग भायं कणा वेभाय भक्खिए णसया । विस भक्खणु जं कीरइ जीर वियइ अचिरकालेण ।। १७५।। पाणं जलेण लेवे तंदुल जल सहिय वंझ कंकोली। विस णासणु संदि काले दट्ठोवि जइयावि ।। १७६।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525037
Book TitleSramana 1999 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year1999
Total Pages210
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size8 MB
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