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प्राकृत वैद्यक (प्राकृत भाषा की आवेदीय अज्ञात जैन रचना) : ४१ धाभय कय पच्छा चउदह तइ तड़ जुउ देह रवि । खीरे वज्जी पीयं जट्ठी तिहला य गंड दूवाय ।। १२६।। कयवय भातिल चित्तय भगारय सूरा विणि कंटाली। मेथिय कांजिय सह पुणु तेडुव थुडिकिय पंच पल अव्भा।।१२७।। तजवु वि लवंग देवे सिययण्णा चालीग जाइहलमेकं । पडिकरसं करसंलियं सव्वाहरेण सल रुव गवहा ।। १२८।। हरडइ गुड सोंठि समं गुलिया सव रोय णासेइ । अह हरडइ गुल गुंज्ज्यिा तं रुय सव्वं पणासेइ ।।१२९।। लवंग तज एलकणा पलु चउसट्ठीय सक्करा पंच । कंपणु हरि संफीहा पंडू खासाइ णासेइ ।।१३० ।। अजमोय मिरिय किण्हा चित्त विडंगाय देवतरु मूढो । सेंधव सउंफा पडिदुइ विहदू रउ बीस दश पच्छा ।। १३१।। वेपल विस्सा चुण्णं समगुल मोयाइ अद्भुपल दिवसे । भक्खिवि एक्कु सराउ उण्हं णीरो च पावेह ।। १३२।। आमं अमेल विसूई कडि गुद पुट्ठि पुडणं पवित्तणयं । जर सिंभ पंडु वाया दारुण रोया पणासेइ ।। १३३।। सउचल रसेण विस्सा मिरिया जवणीय किण्ह जवारं । महु सह गुलिया कित्ता भक्खे गलरोय णासेइ ।।१३४।। तेजव तिरोय गोथं पिप्पलि तयरं च चुण्ण मुहमुद्दो । सम भायं कारित्ता आरोचय णासणं भणियं । । १३५।। पंचलवण जवखारं विवुहा साजीय मूढु चव्वीय । अग्गि अजमोय रामठ सव्व समा चुण्ण भावेह ।। १३६।। विज्जवरे अहवेरे दाडिम रसेण अह उण्ह तोएण । तं चुण्णं भक्खिज्जइ अग्गियरो हियय रोय हरो ।।१३७।। किरवाल कडुव अभया गंठिय मोथ कसिय सम पीयं । मंदग्गी मरु गहणी सुसंधि फुट्टणं विणासेइ ।।१३८।।
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