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________________ यशस्तिलक चम्पू में आयुर्वेदीय स्वस्थवृत्त सम्बन्धी विषय : २३ रात्रि शयन या निद्रा. सोमदेव ने सुखपूर्वक पर्याप्त निद्रा को स्वास्थ्य के लिए अत्यावश्यक एवं उपयोगी बतलाया है। उनके अनुसार सुख की नींद सोकर जागने पर मन और इन्द्रियां प्रसन्न हो जाती हैं, पेट हल्का हो जाता है और पाचन क्रिया ठीक रहती है। यथा अधिगतसुखनिन्द्रः सुप्रसन्नेन्द्रियात्मा सुलघुजठरवृत्तिर्भुक्तपक्तिं दधानः। (पृ०५०७) इसी भांति जिस प्रकार खुली स्थाली (पाक मात्र) में अत्र ठीक से नहीं पकता उसी प्रकार पर्याप्त नींद लिये बिना और व्यायामहीन मनुष्य के भोजन का सम्यक् परिपाक नहीं होता। यथा स्थाल्यां यथा नावरणाननायामघट्टितायां च न साधुपाकः। अनाप्तनिद्रस्य तथा नरेन्द्र व्यायामहीनस्य च नानपाकः।। (पृ० ५०७) वेगावरोध का परिणाम शौच तथा मूत्र विसर्जन की बाधा होने पर उसकी निवृत्ति शीघ्र कर लेना चाहिये। मल और मूल का वेग रोकने से भगन्दर व्याधि उत्पन्न हो जाती है। यथा भगन्दरी स्यन्द विवन्धकाले। (पृ० ५०९) अभ्यङ्ग और उद्वर्तनः प्राचीन काल में शरीर की तेल मालिश करने के लिए अभ्यङ्ग शब्द का व्यवहार किया जाता था। आयुर्वेद में भी अभ्यङ्ग शब्द ही प्रयुक्त किया गया है। सोमदेव के अनुसार अभ्यङ्ग श्रम और वायु को दूर करता है, बल को बढ़ाता है तथा शरीर को दृढ़ करता है। यथा अभ्यंगः श्रमवातहा बलकरः कायस्य दाावहः। (पृ० ५०८) उद्वर्तन या उबटन शरीर में कान्ति बढ़ाता है, मेद, कफ व आलस्य को दूर करता है - स्यादुद्वर्तनमङ्गकान्तिकरणं मेदःकफालस्यजित्। (पृ० ५०८) सोमदेव ने स्नान की उपयोगिता प्रतिपादित करते हुए उससे होने वाले लाभ और उसके गुणों का सुन्दर वर्णन किया है, जो आयुर्वेद में प्रतिपादित सिद्धान्तों से पूर्ण मेल खाता है। यथा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525037
Book TitleSramana 1999 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year1999
Total Pages210
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size8 MB
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