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प्रेक्षाध्यान एवं भावातीत ध्यान : एक चिन्तन
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ही समय लगे। तीसरी बार भी उतना ही समय लगे। इस प्रकार चित्त को नाभि
पर केन्द्रित कर आते-जाते श्वास की प्रेक्षा करें। समय-५ मिनट। (७) इसके पश्चात् भिन्न-भिन्न प्रयोगों के लिए दिये गये शब्दों का १२ मिनट तक
उच्चारण करें। ४ मिनट बाह्य उच्चारणपूर्वक, ४ मिनट मंद व ४ मिनट मानसिक अनुचिन्तन कर उस मन्त्र का जप करें। समय-१२ मिनट। जैसे- मानसिक सन्तुलन हेतु हरे रंग का श्वास, दर्शन-केन्द्र पर ध्यान तथा मन्त्र-आवेश अनुशासित हो रहा हैं, मानसिक सन्तुलन बढ़ रहा है, का उच्चारण
करें। समय- २ मिनट। (८) महाप्राण ध्वनि के द्वारा प्रयोग सम्पन्न करें। समय- २ मिनट।
इस प्रकार पूरा प्रयोग ३० मिनट तक किया जाता है। भावातीत ध्यान पद्धति
ध्यान के लिए चित्त को स्थिर कर, किसी भी आसन में बैठ जायें। मन जागरूक और उन्मुक्त रहे। आँखों को बन्द करके मनःचक्षु के सामने उस मन्त्र को जिसका जप करना है। जब जप करते-करते मन पूरी तरह उसमें रम जाता है तब और भाव लयमय हो जाता है भावों का लयमय होना ही भावातीत अवस्था में चले जाना है। ध्यान की इस अवस्था में आने वाले विचारों को रोकने की कोशिश नहीं करनी चाहिए। वह स्वत: ही चले जायेंगे। इस ध्यान का प्रयोग प्रतिदिन दिन में दो बार २० मिनट तक करना चाहिए।
सन्दर्भ-सूची १. सम्यक्दर्शनज्ञानचारित्राणिमोक्षमार्गः।
- तत्त्वार्थसूत्र, विवेचक- पं० सुखलाल संघवी, पार्श्वनाथ विद्याश्रम शोध
संस्थान, वाराणसी, तृतीय संस्करण, १९७६ ई. सन्, १/१. २. ब्रह्मलीन मुनि, पातञ्जलयोगदर्शन, चौखम्बा विद्याभवन, वाराणसी, चतुर्थ
संस्करण, १९९०ई० सन्, १/१. ३. वही, २/२९. ४. महर्षि महेशयोगी, भावातीतध्यानशैली, आध्यात्मिक पुनरुत्थान आन्दोलन,
शङ्कराचार्य नगर, ऋषिकेश, १९९३ ई. सन् .
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