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विधिपक्ष अपरनाम अंचलगच्छ (अचलगच्छ) का संक्षिप्त इतिहास
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कल्याणसागरसूरि के शिष्य रत्नसागर जी (जिनसे अंचलगच्छ में सागरशाखा अस्तित्त्व में आयी)११५ की परम्परा में हए आचार्य गौतमसागर जी ने अपने सुविहित आचार और चारित्र से अंचलगच्छ को नया जीवन प्रदान किया। अंचलगच्छ को उन्नति के शिखर पर पुन: ले जाने का श्रेय इन्हें ही है। ११६ गुजरात एवं महाराष्ट्र के विभिन्न स्थानों पर जिनशासन की प्रभावना के पश्चात् वि०सं० २००९ में कच्छ प्रान्त की राजधानी भुज में इनका देहान्त हो गया। ११७ तत्पश्चात् इनके शिष्य गुणसागर जी को मुम्बई के श्रीसंघ ने आचार्य और गच्छनायक पद प्रदान किया।११८ गुणसागर जी के निधन के पश्चात् गणोदयसागर जी ने इस गच्छ का नायकत्व ग्रहण किया। वर्तमान में गुणोदयसागरसूरि गच्छाधिपति और कलाप्रभसागरजी आचार्य पद पर प्रतिष्ठित हैं। इनकी निश्रा में ४० मुनि और २१६ साध्वियाँ हैं जो कच्छ एवं मुम्बई के अलावां गुजरात, राजस्थान, महाराष्ट्र व आन्ध्र प्रदेश के विभिन्न स्थानों पर विचरण कर रहे हैं। सन्दर्भ-सूची १-२. सोमचन्द्र धारसी, सम्पा०- अंचलगच्छम्होटीपट्टावली, जामनगर वि०सं०
१९८५, पृ० १४०-१४४. २अ. श्रीपार्श्व, अंचलगच्छदिग्दर्शन, मुम्बई १९६८ई० स०, पृ० ४९.
मुनि जिनविजय, सम्पा०- विविधगच्छीयपट्टावलीसंग्रह, सिंघी जैन ।
ग्रन्थमाला, ग्रन्थांक ५३, मुम्बई १९६१ई०स०, पृ० १०५-१२०. ३अ.
मोहनलाल दलीचन्द देसाई, जैनगूर्जरकविओ, भाग २, मुम्बई, १९३१ ई०स०, पृ० ७६-७७९. Johannes Klatt, ''The Simachari-Satakam of Samaya Sundara and Pattavalis of the Anchala-Gachchha and other gachchhas". The Indian Antiquary, Vol. XXIII, July 1894 A.D., pp. 169-183. H.D. Velankar, Jinaratnakosha, Government Oriental Series, Class C, No. 4, Bhandarkar Oriental Research Institute, Poona 1944 A.D., p. 59. P. Peterson, Ed. A Fifth Report on Operation in the Search of Sanskrit Mss. in the Bombay circle, April 1892-March
1895, Bombay 1896 A.D. No. 44, pp. 65-66. ६-७. रूपेन्द्रकुमार पगारिया, “शतपदीप्रश्नोत्तरपद्धति में प्रतिपादित जैनाचार",
जैन विद्या के आयाम, भाग ४, सम्पा०- प्रो० सागरमल जैन, पार्श्वनाथ विद्याश्रम, वाराणसी, १९९४ ई०स०, पृ० ३१-४२. For Private & Personal Use Only
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३ब.
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