________________
विधिपक्ष अपरनाम अंचलगच्छ (अचलगच्छ) का संक्षिप्त इतिहास
: १३९
आचार्य कल्याणसागरसूरि के शिष्य थे।८३ कल्याणसागरसूरि के एक अन्य शिष्य भीमरत्न हुए। इनके द्वारा रचित कोई कृति नहीं मिलती। यही बात इनके शिष्य उदयसागर के बारे में भी कही जा सकती है। उदयसागर के शिष्य मुनि दयासागर हए, जिन्होंने वि०सं० १६६९ में मदनराजर्षिरास की रचना की।८४ इनके शिष्य मुनि धनजी द्वारा रचित सिंहदत्तरास (रचनाकाल वि०सं० की १७वीं शती का अन्तिम भाग) नामक कृति प्राप्त होती है।८५ वि०सं० १५७७ में लिखी गयी नेमिनाथचरित (त्रिशष्टिशलाकापुरुषचरित का एक भाग) की दाताप्रशस्ति से ज्ञात होता है कि उक्त महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ को भुज में चातुर्मास के अवसर पर पुण्यसिंह नामक एक श्रेष्ठी ने मुनि दयासागर और मुनि देवनिधान को समर्पित की थी।८६ इस दाताप्रशस्ति में लेखनकाल वि०सं० १५७७ दिया गया है, जो असम्भव है। वस्तुत: यह वि०सं० १६७७ होना चाहिए, क्योंकि अन्य सभी साक्ष्यों से उक्त मुनिजनों का काल विक्रम संवत् की १७वीं शती का अन्तिम चरण सिद्ध होता है। कल्याणसागरसूरि के एक शिष्य रत्नसागर हुए, जिनसे अंचलगच्छ की सागरशाखा अस्तित्त्व में आयी।
इस प्रकार उक्त सभी साक्ष्यों के आधार पर कल्याणसागरसूरि के शिष्यों-प्रशिष्यों की एक तालिका निर्मित की जा सकती है -
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org