SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 138
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ विधिपक्ष अपरनाम अंचलगच्छ (अचलगच्छ) का संक्षिप्त इतिहास : १३५ धर्ममूर्तिसूरि के एक अन्य शिष्य विमलमूर्ति के बारे में भी जानकारी प्राप्त होती है। इनके द्वारा रचित कोई कृति तो नहीं मिलती, यही बात इनके शिष्य गुणमूर्ति के बारे में भी कही जा सकती है; किन्तु इनके प्रशिष्य ज्ञानमूर्ति ने वि०सं० १६९४/ ई०सन् १६३८ में रूपसेनराजर्षिचौपाई की रचना की जिसकी प्रशस्ति से उक्त बात ज्ञात होती है। ६५ इसी प्रकार धर्ममूर्तिसूरि के एक अन्य शिष्य भानुलब्धि द्वारा कोई कृति नहीं मिलती; किन्तु उनके शिष्य मेघराज द्वारा रचित वि० सं० १६७० में रचित सत्तरभेदीपूजा नामक कृति प्राप्त होती है जिसकी प्रशस्ति में रचनाकार ने अपने गुरु-प्रगुरु आदि का सादर उल्लेख किया है।६६ कल्याणसागरसरि भी धर्ममर्तिसरि के ही शिष्य थे जो उनके निधनोपरान्त अंचलगच्छ के नायक बने। इस प्रकार उक्त साक्ष्यों के आधार पर धर्ममूर्तिसूरि के शिष्यों-प्रशिष्यों की एक तालिका निर्मित की जा सकती है, जो इस प्रकार है - Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525037
Book TitleSramana 1999 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year1999
Total Pages210
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy