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विधिपक्ष अपरनाम अंचलगच्छ (अचलगच्छ) का संक्षिप्त इतिहास
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. श्रीअजितनाथबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं च।।
अजितनाथ की धातुप्रतिमा का लेख चिन्तामणिपार्श्वनाथ जिनालय, खम्भात अंचलगच्छीयलेखसंग्रह, लेखांक २६. मेरुनन्दनसूरि : इन्होंने बीसविहरमानस्तवन की रचना की।३० पं० महीनन्दनगणि : वि०सं० १४६३/ई०स० १४०७ में इनके पठनार्थ
कालकाचार्यकथा३१ की प्रतिलिपि की गयी। __ लावण्यकीर्ति : इनसे अंचलगच्छ की कीर्तिशाखा अस्तित्त्व में आयी। ३२ ५. पं० क्षमारल ६. रत्नसिंहसूरि : पायधुनी- मुम्बई स्थित गौडीजी जिनालय में रखी शीतलनाथ
की प्रतिमा पर उत्कीर्ण वि० सं० १४९६ के लेख में प्रतिमाप्रतिष्ठापक के रूप में इनका नाम मिलता है।३३ यह प्रतिमा आचार्य जयकीर्तिसूरि के उपदेश से प्रतिष्ठापित की गयी थी। श्रीपार्श्व ने इस लेख की वाचना दी है, जो इस प्रकार है : सम्वत् १४९६ वर्षे फागुण सुदि २ शुक्रे श्रीश्रीमाल ज्ञातीय मं० कडूया भार्या गउरी पुत्र श्रे० पर्वतेन भा० अमरी युतेन श्रीअंचलगच्छेश श्रीश्री जयकीर्तिसूरीणामुपदेशेन स्वमातु श्रेयसे श्री शीतलनाथबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं श्रीरत्नसिंहसूरिभिः।। शीलरल : इन्होंने वि० सं० १४९१/ई०स० १४३५ में अणहिलपुरपत्तन में जैनमेघदूतकाव्य पर संस्कृत भाषा में टीका की रचना की। ३४ इनके द्वारा रचित कुछ स्तोत्र भी प्राप्त होते हैं। ३५ स्तुतिचौरासी भी इन्हीं की कृति मानी जाती है।३६
जयकेशरीसूरि : पट्टधर ९. महीमेरुगणि : इनके द्वारा रचित क्रियागुप्ता अपरनाम जिनस्तुति-पंचाशिका,३७
कल्पसूत्रअवचूरि, ३८ मेघदूतटीका३८अ आदि कृतियाँ प्राप्त होती हैं। जयकीर्तिसूरि के समकालीन अंचलगच्छीय अन्य मुनिजन
आचार्य कलाप्रभसागरसूरि ने विभिन्न साक्ष्यों के आधार पर जयकीर्तिसूरि के समकालीन जिन मुनिजनों का उल्लेख है३९ उनके नाम इस प्रकार हैं -
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