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________________ ११४ : श्रमण/अप्रैल-जून/१९९९ इसी प्रकार विविधगच्छीयपट्टावलीसंग्रह में मुनि जिनविजय ने अंचलगच्छीय आचार्य भावसागरसूरि द्वारा संस्कृत भाषा में रचित पट्टावली वीरवंशपट्टानुक्रमगुर्वावली प्रकाशित की है।३ इस पट्टावली में रचनाकार ने सुधर्मास्वामी से लेकर अपने गुरु सिद्धान्तसागरसूरि तक का २३१ श्लोकों में विवरण प्रस्तुत किया है, जो इस गच्छ के इतिहास के अध्ययन के लिये अत्यन्त उपयुक्त है। श्री मोहनलाल दलीचन्द देसाई ने स्वलिखित जैनगूर्जरकविओ, भाग २, खण्ड १ के अन्त में गुजराती भाषा में अंचलगच्छ की भी एक पट्टावली प्रकाशित की है।३अ इसी प्रकार The Indian Antiquary, Vol. xxiii में भी अंचलगच्छ की एक पट्टावली प्रकाशित है।३ब अंचलगच्छ की अप्रकाशित पट्टावलियों में मेरुतुंगसूरि के शिष्य कवि कान्ह (वि०सं० १४वीं शती का अंतिम चरण) द्वारा १४० कण्डिकाओं में रचित अंचलगच्छ नायकगुरुरास; कवि लाखाकृत गुरुपट्टावली (वि० सं० १६वीं शती के मध्य के आस-पास); अंचलगच्छीय लक्ष्मीचन्द्र के शिष्य लावण्यचन्द्र द्वारा रचित वीरवंशानुक्रम (वि०सं० १७६३/ई०स० १७०७) आदि उल्लेखनीय हैं। चूंकि इस गच्छ के पट्टधर आचार्यों के क्रम में कभी कोई विवाद नहीं है अतः इन सभी में अपने-अपने समय तक का समान विवरण मिलता है, जो इस प्रकार है आर्यरक्षितसूरि (वि०सं० १२३६ में स्वर्गस्थ) जयसिंहसूरि (वि० सं० १२५८ में स्वर्गस्थ) धर्मघोषसूरि (वि०सं० १२६८ में स्वर्गस्थ) महेन्द्रसिंहसूरि (वि०सं० १३०९ में स्वर्गस्थ) सिंहप्रभसूरि (वि० सं० १३१३ में स्वर्गस्थ) अजितसिंहसूरि (वि०सं० १३३९ में स्वर्गस्थ) देवेन्द्रसिंहसूरि (वि०सं० १३७१ में स्वर्गस्थ) धर्मप्रभसूरि (वि०सं० १३९३ में स्वर्गस्थ) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525037
Book TitleSramana 1999 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year1999
Total Pages210
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size8 MB
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