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________________ प्राचीन भारत के प्रमुख तीर्थस्थल : बौद्ध और जैनधर्म के विशेष सन्दर्भ में: ९९ की ऐतिहासिकता को ही स्वीकार किया है। लेकिन धार्मिक प्रतिमान्यताओं में विभिन्न क्षेत्र तीर्थों के रूप में प्रतिस्थापित हुए हैं और उन्हें पार्श्वनाथ और महावीर के अतिरिक्त अन्य तीर्थङ्करों से भी सम्बद्ध किया गया है। जैन परम्परा के अन्तर्गत सभी तीर्थङ्करों के जन्म, विहार, ज्ञान-प्राप्ति और निर्वाण आदि स्थलों के सम्बन्ध में विवरण निहित है। इस प्रकार जैन समाज में तीर्थों की बहुतायत संख्या स्वीकार की गयी है। इनके सम्बन्ध में ऐतिहासिक सामग्री भी अत्यधिक है। बौद्धधर्म में गौतम बुद्ध के उपदेशों तथा उनके समकालीन राजवंशों के इतिहास से विपुल सामग्री प्राप्त होती है, जो तत्कालीन बौद्ध परम्परा और उनके द्वारा स्थापित तीर्थों के विषय में विवरण प्रदान करते हैं। शोध के अन्तर्गत तीर्थ के अवधारणात्मक स्पष्टीकरण के साथ-साथ प्राचीन भारतीय समाज के धार्मिक स्वरूप एवम् उसके विकास-क्रम में विभिन्न घटनाओं एवं धर्मों की सृजनात्मकता के ऐतिहासिक पक्ष का विवरण दिया गया है। वैदिक संस्कृति के उत्तरकालीन समाज में ब्राह्मण संस्कृति के अन्तर्द्वन्द्व में बौद्ध एवं जैन धर्मों के भिन्न दर्शनों की स्थापना और क्षेत्र विशेष में राजधर्म के रूप में उनकी स्वीकृति और तदन्तर उनके विकास तथा प्रचार-प्रसार से सम्बन्धित ऐतिहासिक तथ्यों का विवेचन किया गया है। प्रमुख प्राचीन बौद्ध तीर्थस्थलों – लुम्बिनी, बोधगया, सारनाथ और कुशीनगर- जो क्रमश: गौतम बुद्ध के जन्म, ज्ञान, प्रथम दीक्षा और महापरिनिर्वाण से सम्बन्धित हैं। इनके अतिरिक्त बौद्ध-दर्शन के चार प्रमुख सिद्धान्तों के उद्भवस्थल श्रावस्ती, सांकाश्य, राजगिर और वैशाली को भी प्रधान तीर्थस्थल स्वीकार किया गया है। पालि साहित्य के अन्तर्गत उपर्युक्त आठ प्रमुख बौद्ध तीर्थस्थलों का उल्लेख किया गया है। साथ ही प्राचीन भारत में बौद्धधर्म से सम्बन्धित अन्य पवित्र क्षेत्रों में नालन्दा, साँची, भरत, अमरावती, तक्षशिला, अजन्ता, बाघ, कौशाम्बी, धर्मशाला आदि का संक्षिप्त विवरण भी इस शोधप्रबन्ध के अन्तर्गत दिया गया है। प्रमुख प्राचीन जैन-तीर्थों में उत्तर भारत, पूर्व भारत, मध्य भारत और पश्चिम भारत के साथ-साथ दक्षिण भारत में प्रतिस्थापित विभिन्न तीर्थों का विवेचन किया गया है। शोध के अन्तर्गत १०वीं शताब्दी तक तीर्थस्थल के रूप में प्रतिस्थापित तीर्थों को ही प्राचीन तीर्थ के रूप में स्वीकार किया गया है। इस दृष्टि में रखते हुए उत्तर भारत के अयोध्या, अहिच्छत्रा, काम्पिल्यपुर, कौशाम्बी, चन्द्रावती, प्रयाग, मथुरा, रत्नवाहपुर, वाराणसी, विन्ध्याचल, श्रावस्ती, शैरीपुर एवं हस्तिनापुर, पूर्व भारत के बिहार, बंगाल और उड़ीसा में स्थापित तीर्थ-क्षेत्रों यथा कुण्डग्राम, चम्पापुरी, पाटलिपुत्र, पावापुरी, मिथिलापुरी, वैभारगिरि, सम्मेदशिखर, पुण्ड्रपर्वत, कलिंग देश, मध्य भारत के Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525037
Book TitleSramana 1999 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year1999
Total Pages210
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size8 MB
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