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प्राचीन भारत के प्रमुख तीर्थस्थल : बौद्ध और जैनधर्म के विशेष सन्दर्भ में: ९७
तीर्थस्थलों की महत्ता के परिप्रेक्ष्य में विभिन्न अध्ययन किये गये हैं। उनसे यह स्पष्ट होता है कि तीर्थस्थल धार्मिक कथानकों के संवाहक और प्रमाण हैं। ये धर्म के सृजन शक्ति में विशिष्ट इतिहास के साक्षी हैं । इतिहास के निर्माण में तीर्थस्थलों की . भूमिका प्रधान रही है। समाज के प्रत्येक पक्ष को प्रभावित करने में तीर्थस्थल महत्त्वपूर्ण रहे हैं। विश्व के सभी धर्मों में उसके प्रतिस्थापक, अनुयायी एवं प्रचारक के जन्म-मृत्यु, ज्ञान-क्षेत्र, उपलब्धि एवं परिभ्रमण क्षेत्र आदि के आधार पर कुछ निश्चित स्थानों को पवित्र स्थल के रूप में स्वीकृति प्रदान करने की परम्परा पायी जाती है। इन पवित्र स्थलों से धार्मिक मान्यताओं की निरन्तरता संयुक्त कर दी जाती है। जैन एवं बौद्ध परम्परा में उपासकों का उद्देश्य तीर्थ विशेष के महत्त्व को स्पष्ट करना प्रमुख रहा है और इस दृष्टि से विभिन्न ग्रन्थ भी रचे गये हैं। कुछ ग्रन्थ अलग-अलग तीर्थों पर स्वतन्त्र रूप से सम्पादित हैं और उनमें से कुछ में निष्पक्षता भी निहित है। लेकिन किसी भी ग्रन्थ प्राचीन भारत के बौद्ध और जैन तीर्थों की भौगोलिक स्थिति, उनकी प्राचीनता, उनसे सम्बन्धित कथानक, जीर्णोद्धार, इनसे सम्बन्धित स्थापत्य और कला तथा अन्य सम्बन्धित घटनाएँ नहीं मिलतीं । अतः इस शोध के अन्तर्गत उपर्युक्त सभी तथ्यों को ध्यान में रखा गया है।
प्रमुख बौद्ध तीर्थस्थलों तथा स्थापत्य और कला से सम्बन्धित विवरणों से उनकी प्राचीन परम्पराओं और उनसे सम्बन्धित घटनाक्रमों का विवरण प्रदान करने वाले प्रमुख ग्रन्थों में डॉ० प्रियसेन सिंह जी द्वारा लिखित भारत के प्रमुख बौद्ध तीर्थस्थल, भिक्षु धर्मरक्षित का सारनाथदिग्दर्शन, श्री वासुदेव उपाध्याय द्वारा लिखित प्राचीन भारतीय स्तूप, गुहा एवं मन्दिर, श्री बी० एन० चौधरी कृत बुद्धिस्ट सेण्टर इन ऐंश्येण्ट इण्डिया, श्री डी०सी० अहिर द्वारा रचित बुद्धिस्ट श्राइन्स इन इण्डिया, श्री एस० बील का सम रिमार्कस् द ग्रेट टोप एट साँची, श्री ए०के० कुमारस्वामी की अर्ली इण्डियन आर्किटेक्चर, श्री दयाराम साहनी की गाइड टू दी बुद्धिस्ट रूइंस ऑफ सारनाथ आदि महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ हैं। वहीं जैन तीर्थस्थल तथा स्थापत्य एवं कला से सम्बन्धित विवरण प्रदान करने वाले प्रमुख ग्रन्थों में मुनिश्री न्यायविजय जी द्वारा लिखित जैन तीर्थों का इतिहास (गुजराती), पं० अम्बालाल प्रेमचन्द शाह द्वारा लिखित और आनन्दजी कल्याणजी की पेढ़ी, अहमदाबाद से प्रकाशित जैनतीर्थसर्वसंग्रह, श्री जगदीशचन्द्र जैन द्वारा लिखित भारत के प्राचीन जैन तीर्थ, श्री विद्याधर जोहरापुरकर द्वारा सम्पादित तीर्थवन्दनसंग्रह, श्री बलभद्र जैन द्वारा रचित भारत के दिगम्बर जैन तीर्थ, श्री महावीर कल्याण संघ द्वारा प्रकाशित तीर्थदर्शन तथा जैन तीर्थों के बारे में सबसे ज्यादा जानकारी प्रदान करने वाली डॉ० शिवप्रसाद द्वारा लिखित जैन तीर्थों का ऐतिहासिक अध्ययन साथ ही अमलानन्द घोष की जैन कला एवं स्थापत्य, देवला मित्रा की मथुरा : प्राचीन इतिहास, जैन कला एवं स्थापत्य इत्यादि प्रमुख ग्रन्थ हैं।
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