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नागपुरीयतपागच्छ का इतिहास जो इस प्रकार है:
सम्वत् १६६७ फालगुन कृष्णा ६ गुरौ................उसवालज्ञातीय दूगड़गोत्रे सा० सालिग पुत्र साह राजपाल पुत्र सा० खीमाकेन भार्या कुशलदे पुत्र गिरिधर सा० मानसिंघयुतेन श्री श्रेयासनाथबिंब कारितं प्रतिष्ठितं श्रीनागौरीतपागच्छे श्रीचन्द्रकीर्तिसूरि पट्टे श्रीसोमकीर्तिसूरिपट्टे श्रीदेवकीर्तिसूरि श्रीअमर ............... प्रतिष्ठितं नागौरी तपागच्छ श्री आगरानगरे मानसिंघेन लिपीकृतं ।। मूलनायक की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख श्रेयांसनाथ जिनालय, हिंडोन
इस प्रकार इस अभिलेख में नागपुरीयतपागच्छ के चार मुनिजनों के नाम मिल जाते हैं, जो इस प्रकार हैं:
चन्द्रकीर्तिसूरि
सोमकीर्ति
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देवकीर्ति
अमर (कीर्ति) वि० सं० १५९६ के प्रतिमा लेख में उल्लिखित रत्नकीर्तिसूरि और वि० सं० १६६७ के उक्त प्रतिमालेख में उल्लिखित चन्द्रकीर्ति के बीच किस प्रकार का सम्बन्ध था, यह बात उक्त प्रतिमालेख से ज्ञात नहीं होता है।
नागपुरीयतपागच्छ से सम्बद्ध यही चार अभिलेखीय साक्ष्य आज आज मिलते हैं, किन्तु इस गच्छ के इतिहास के अध्ययन की दृष्टि से ये अत्यन्त महत्त्वपूर्ण
नागपुरीयतपागच्छ से सम्बद्ध साहित्यिक साक्ष्य
नागपुरीयतपागच्छ का उल्लेख करने वाला सर्वप्रथम साहित्यिक साक्ष्य है इस गच्छ के आचार्य चन्द्रकीर्तिसूरि द्वारा वि० सं० १६२३/ई० स० १५६७ में रचित सारस्वतव्याकरणदीपिका की प्रशास्ति', जिसमें रचनाकार ने अपनी गुरुपरम्परा की लम्बी गुर्वावली दी है, जो इस गच्छ के इतिहास के अध्ययन की दृष्टि से अतिमूल्यवान है। गुर्वावली इस प्रकार है: