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________________ ६१ श्रमण : अतीत के झरोखे में लेखक पं० के० भुजबलि शास्त्री मुनि दुलहराज जी वर्ष Jain Education International १६ १६ अंक ३ ३ ई० सन् १९६५ १९६५ पृष्ठ २०-११ २२ For Private & Personal Use Only लेख डणायक रविकीर्ति उपदेश विधि कर्मप्राभृत अथवा षटखंडागम - एक परिचय (क्रमश:) त्याग का मनोविज्ञान पार्श्वनाथ विद्याश्रम शोध संस्थान की कार्यदिशा जैनदर्शन और भक्ति-एक थीसिस भगवान् बुद्ध और भगवान् महावीर क्या जैनधर्म जीवित रह सकता है ? रहस्यवादी जैन अपभ्रंशकाव्य का हिन्दी साहित्य पर प्रभाव कर्मप्राभृत अथवा षट्खंडागमएक परिचय (क्रमश:) रायपसेणियउपांग और उसका रचनाकाल की समीक्षा श्रमण संस्कृति का हार्द रहस्यवादी जैन अपभ्रंशकाव्य का हिन्दी साहित्य पर प्रभाव (क्रमश:) डॉ० मोहनलाल मेहता श्री माँ, अरविन्दाश्रम पं० सुखलाल संघवी डॉ० देवेन्द्र कुमार पं० दलसुख मालवणिया श्री गोपीचन्द धाड़ीवाल १९६५ १९६५ १९६५ १९६५ १९६५ १९६५ २३-२८ २९-३३ ३४-३६ ३-८ ९-२१ २२-२५ १६ १६ ४ ४ श्री प्रेमचन्द जैन शास्त्री १९६५ २६-३१ डॉ० मोहनलाल मेहता ४ १९६५ ३२-३७ मुनि कल्याणविजय श्री लक्ष्मीनारायण 'भारतीय' १६ ५ १९६५ १९६५ ३८ २-११ www.jainelibrary.org श्री प्रेमचन्द शास्त्री ___१६ ५ १९६५ १२-१७
SR No.525034
Book TitleSramana 1998 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year1998
Total Pages370
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size10 MB
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