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________________ ३७ Jain Education International श्रमण : अतीत के झरोखे में लेखक श्री सूरजचन्द्र ‘सत्यप्रेमी' श्री प्यारेलाल श्रीमाल मुनि समदर्शी कुमार प्रियदर्शी ई० सन् १९५९ - १९५९ १९५९ १९५९ पृष्ठ १७-१८ १९-२२ २३-२४ २५-२६ For Private & Personal Use Only लेख ध्यान योग की जैन परम्परा समाज का कोढ़-जिम्मनवार क्या अणुव्रत आन्दोलन असाम्प्रदायिक है ? जीवन के दो पक्ष । राजस्थानी लोक कथाओं सम्बन्धी - साहित्य निर्माण में जैनों का योगदान एक दुःखद अवसान आध्यात्मिक साधना और उसकी परम्परायें वह बनजारा जीवन की बुनियाद -विनय वेष का त्यागी बिना पैसे की यात्रा नया विहान-नया समाज पर्यषण की सही आराधना पर्युषण एक चिन्तन सामायिक और तपस्या का रहस्य पर्वराज पर्युषण पर्युषण पर्व के आठ सन्देश श्री अगरचन्द नाहटा श्री रतन पहाड़ी कुमारी इन्दुकला महात्मा भगवानदीन श्री ज्ञानमुनि जी श्री माईदयाल सतीश कुमार श्री बद्रीप्रसाद स्वामी श्री हीराचन्द्र सूरि विद्यालंकार श्री लक्ष्मीनारायण भारतीय उपाध्याय अमरमुनि जी पं० अमृतलाल शास्त्री मुनि श्री नेमिचन्द्र जी #22222222222222222 Mrror arror- 22 2 2 2 2023 १९५९ १९५९ १९५९ १९५९ १९५९ १९५९ १९५९ १९५९ १९५९ १९५९ १९५९ १९५९ १९५९ २९-३१ ३८-३९ ९-१६ १८-२१ २४-२५ २६-२७ २८-३१ ३२-३५ ६-८, ९-१० ११-१२ १५-१६ १७-२१ www.jainelibrary.org
SR No.525034
Book TitleSramana 1998 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year1998
Total Pages370
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size10 MB
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