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________________ विद्यापीठ के प्रांगण में पार्श्वनाथ विद्यापीठ का हीरक जयन्ती समारोह सम्पन्न जैन विद्या के शोध, अध्ययन एवं प्रकाशन के क्षेत्र में पिछले छह दशकों से संलग्न पार्श्वनाथ विद्यापीठ की हीरक जयन्ती के अवसर पर विद्यापीठ के पूर्व निदेशक प्रो० सागरमल जैन एवं मंत्री श्री भूपेन्द्रनाथ जैन के अभिनन्दन, विद्यापीठ के नवीन प्रकाशनों का विमोचन, जैन अध्ययन : समीक्षा एवं सम्भावनायें विषय पर त्रिदिवसीय (५-७ अप्रैल १९९८) राष्ट्रीय संगोष्ठी तथा विद्यापीठ के सभी शोध छात्रों के पुनर्मिलन आदि कार्यक्रमों का भव्य आयोजन किया गया। समारोह के उद्घाटन सत्र में मुख्य अतिथि के रूप में विश्वविख्यात् कानूनविद् और ब्रिटेन में भारत के पूर्व उच्चायुक्त तथा वर्तमान सांसद डॉ० लक्ष्मीमल सिंघवी ने समारोह की गरिमा बढ़ाई । समारोह में प्रो० सागरमल जैन को जैन विद्या के अध्ययन एवं शोध के क्षेत्र में अभूतपूर्व योगदान के लिये पार्श्वनाथ विद्यापीठ की संचालक समिति के तत्त्वावधान में पार्श्वनाथ विद्यापीठ द्वारा एक अभिनन्दन ग्रन्थ, प्रशस्तिपत्र, शाल, चन्दन माला आदि भेंट किया गया। इस सुअवसर पर विद्यापीठ के प्राण श्री भूपेन्द्रनाथ जी जैन की अविस्मरणीय सेवाओं के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करते हुए उनका भी अभिनन्दन करते हुए उन्हें भी एक अभिनन्दन ग्रन्थ भेंट किया गया । काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो० हरिगौतम इस समारोह में विशिष्ट अतिथि के रूप में उपस्थित रहे । उन्होंने विद्यापीठ द्वारा प्रकाशित नवीन ग्रन्थों का विमोचन किया। कार्यक्रम का संचालन पूर्व राजनयिक श्री एन०पी० जैन ने किया। इस अवसर पर विद्यापीठ की संचालक समिति के श्री नृपराज जी जैन, श्री नेमनाथ जी जैन, श्री इन्द्रभूति बरार, श्री अरिदमन जी जैन, श्री शौरीलाल जैन, श्री मुलक राज जैन तथा स्थानीय जैन समाज के प्रायः सभी गणमान्य जन उपस्थित थे। इस अवसर पर डॉ० रमनलाल सी० शाह, प्रो० रमाशंकर त्रिपाठी, प्रो० हेमनदास नारायण सामतानी, डॉ० श्रीरंजन सूरिदेव, प्रो० जुगलकिशोर मिश्र, डॉ० धर्मचन्द्र जैन, डॉ० दीनानाथ शर्मा, श्री हजारीमल बांठिया, श्री कन्हैयालाल बांठिया, डॉ. विजयकुमार जैन, प्रो० रमेशचन्द्र शर्मा, डॉ० मारुति नन्दन तिवारी तथा अन्य स्थानीय विद्वान् बड़ी संख्या में उपस्थित रहे। ____ आगन्तुक अतिथियों ने विद्यापीठ में कलामर्मज्ञ श्री सुरेन्द्र मोहन जैन (अवकाश प्राप्त अभियन्ता) के सहयोग से स्थापित पुरातत्त्व संग्रहालय का भी अवलोकन किया और इसमें प्रदर्शित विभिन्न जैन ग्रन्थों की दुर्लभ पाण्डुलिपियों, प्राचीन मुद्राओं, जैनप्रतिमाओं Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525034
Book TitleSramana 1998 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year1998
Total Pages370
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size10 MB
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