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________________ अंक Jain Education International २ पृष्ठ १०-१२ २६-२७ २८-३० ३१-३३ ३-५ ई० सन् १९५७ १९५७ १९५७. १९५७ १९५८ १९५८ १९५८ or or or ६-९ or लेख आचारांगसूत्र (क्रमश:) आमिष भोजन मनुष्य का आहार नहीं है इसे दया धर्म कहें या और कुछ ? सब जीवों को समान समझें लिखाई का सस्तापन श्रीकृष्ण की जीवन झाँकी गाय का दूध आचारांगसूत्र (क्रमश:) जीवन संग्राम निरामिष भोजन : एक समस्या अहिंसा की तीन धारायें घृणा, प्रेम और स्वास्थ्य आचारांगसूत्र (क्रमश:) योग और भोग श्रमणसंस्कृति के मौलिक उपादान For Private & Personal Use Only <<<<Wwwwwwwwwww. श्रमण : अतीत के झरोखे में लेखक वर्ष पं० श्री दलसख मालवणिया ९ स्व० आचार्य श्री जवाहर ९ श्री परमानन्द कुँवर जी कापड़िया ९ श्री मोरारजी देसाई ९ श्री अगरचन्द नाहटा श्री विजयमुनि शास्त्री ९ श्री अत्रिदेव विद्यालंकार पं० दलसुख मालवणिया श्री भागचन्द जैन ९ डॉ० सम्पूर्णानन्द ९ पं० मुनि श्रीमल्ल जी म० सा० ९ श्रीमती प्रेमलता गुप्ता पं० दलसुख मालवणिया विजयमुनि शास्त्री ९ श्री वसन्तकुमार चट्टोपाध्याय ९ अनु० कस्तूरमल बांठिया श्री श्रीरंजन सूरिदेव ९ मुनि श्री आईदान जी or or १९५८ ३ ३ १६-१८ २३-२५ २६-२७ २८-३३ ३४-३७ or or or or or or १९५८ १९५८ १९५८ १९५८ १९५८ १९५८ १९५८ ४ ३-६ ७-८ ९-२१ www.jainelibrary.org विपाकसूत्र की कथाएं श्री विनयचन्द्र दुर्लभ जी ४ << १९५८ २९-३४ ३५-३६ or १९५८
SR No.525034
Book TitleSramana 1998 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year1998
Total Pages370
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size10 MB
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