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________________ श्रमण खरतरगच्छ-पिप्पलकशाखा का इतिहास डॉ० शिवप्रसाद * अन्यान्य गच्छों की भाँति खरतरगच्छ से भी समय-समय पर विभिन्न घटनाक्रमों अथवा कारणों से अस्तित्त्व में आयी विभिन्न शाखाओं में पिप्पलकशाखा भी एक है । वि०सं० १४६९ / ई०स० १४१३ या वि० सं० १४७४ / ई०स० १४१८ में खरतरगच्छीय आचार्य जिनराजसूरि के पट्टधर जिनवर्धनसूरि से यह शाखा अस्तित्त्व में आयी । १ जैसलमेर स्थित चिन्तामणि पार्श्वनाथ जिनालय स्थित क्षेत्रपाल के उपद्रव के कारण खरतरगच्छ के वरिष्ठ आचार्य सागरचन्द्रसूरि ने जिनराजसूरि के पट्ट पर आसीन जिनवर्धनसूरि को हटाकर उनके स्थान उनके स्थान पर जिनभद्रसूरि को प्रतिष्ठित किया, जिससे जिनवर्धनसूरि और उनके शिष्य समुदाय में तीव्र असन्तोष फैल गया और परिणामस्वरूप उन्होंने अपने शिष्यों और अनुयायियों के साथ मुख्य शाखा से सम्बन्ध विच्छेद कर लिया। इस घटना के पश्चात् जिनवर्धनसूरि पीपलिया ग्राम में ही रहने लगे अतः उनका शिष्य समुदाय पिप्पलकशाखा या पीपलिया शाखा के नाम से प्रसिद्ध हो गया । २ खरतरगच्छ की इस शाखा में आज्ञासुन्दर, विवेकहंस, जिनसागरसूरि, जिनसमुद्रसूरि, जिनदेवसूरि, जिनसुन्दरसूरि, जिनहर्षसूरि, जिनचन्द्रसूरि 'द्वितीय', धर्मसमुद्रगणि, राजसुन्दर, जिनवर्धमानसूरि आदि कई प्रसिद्ध ग्रन्थकार हो चुके हैं। पिप्पलकशाखा से सम्बद्ध अनेक जिनप्रतिमायें मिली हैं जो वि० सं० १४६७ से वि० सं० १५७७ तक की हैं। प्रचलित परम्परानुसार इस शाखा से सम्बद्ध रचनाकारों की विभिन्न कृतियों में उनकी गुरु- परम्परा की छोटी-छोटी गुर्वावली भी प्राप्त होती है। इसके अतिरिक्त वि० सं० १६६९ / ई०स० १६१३ में रची गयी इस शाखा की एक पट्टावली३ भी मिलती है जो जिनचन्द्रसूरि 'तृतीय' के शिष्य राजसुन्दर की कृति है । साम्प्रत निबन्ध में उक्त सभी साहित्यिक और अभिलेखीय साक्ष्यों के आधार पर खरतरगच्छ की इस शाखा के इतिहास पर प्रकाश डालने का प्रयास किया गया है। शाखा प्रवर्तक आचार्य जिनवर्धनसूरि अपने समय के उद्भट विद्वानों में से एक थे। वि० सं० १४७४ / ई० सन् १९४१८ में उन्होंने शिवादित्य द्वारा रचित सप्तपदार्थी नामक कृति पर वृत्ति की रचना की । वाग्भट्टालंकारटीका' तथा पूर्वदेशीय * प्रवक्ता, पार्श्वनाथ विद्यापीठ, वाराणसी।
SR No.525033
Book TitleSramana 1998 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshokkumar Singh, Shivprasad, Shreeprakash Pandey
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year1998
Total Pages136
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size10 MB
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