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________________ स्वयं की अनेकान्तमयी समझ से तनावमुक्ति conversations with, a consciousness behind your form. That part is always perfect. There is no struggle or suffering in that part of you. That is your transcendent dimension of thought." इन पंक्तियों का भावार्थ यह है कि आपकी चेतना का एक भाग ऐसा है जहां कोई संघर्ष नहीं है, कोई कष्ट नहीं है, सदैव परिपूर्ण है, वह सदैव एक दैवीय सहारे की तरह आपका शाश्वत साथी है। ५. स्वयं की यथार्थ समझ का अभ्यास टाइपराइटर के अक्षरों की स्थिति का ज्ञान होते ही टाइप करना नहीं आ जाता है। कार के एक्सीलेरेटर, गिअर, क्लच, ब्रेक आदि की जानकारी लेते ही कार चलाना नहीं आ जाता है। जानकारी के बाद अभ्यास की आवश्यकता होती है। जानकारी अन्दर गहराई तक उतरनी चाहिए। ___ इसी प्रकार अपनी आत्मा के स्थायी परिचय एवं बदलने योग्य परिचय की जानकारी से विशेष प्रयोजन सिद्ध नहीं होता है। वीणा, कार, टाइपराइटर आदि के अभ्यास की तरह इसके अभ्यास हेतु बार-बार इस तरह के वर्णनों का पठन, चिंतन एवं मनन की भी आवश्यकता है। अपने स्थायी परिचय एवं अस्थायी परिचय में भेदज्ञान को गहराई तक उतारने हेतु हमें अभ्यास करना होगा। उक्त भेदज्ञान को हृदयंगम करने के बाद वे घटनाएं जो हमें व्यथित एवं तनावग्रस्त कर देती थीं अब व्यथित नहीं कर सकेंगी। ऐसी घटनाओं की आवृत्ति भी कम हो सकती है। वर्षा से कच्चा मकान भी भीगता है व पक्का मकान भी किन्तु अन्तर यह रहता है कि पक्के मकान की छत से पानी मकान के अन्दर प्रवेश नहीं करता है अत: मकाननिवासी मकान के बाहर से भीगने के बावजूद उस वर्षा से व्यथित नहीं होता है। स्वयं की यथार्थ समझ हमारी आत्मा को वैसा ही पक्कापन प्रदान करती है। ‘स्वयं की समझ' विषय पर चर्चा का समापन करते हुए बैंक के एक कैशियर का उदाहरण लेते हैं। यह कैशियर प्रति समय किसी को रुपये दे रहा होता है या ले रहा होता है। एक तरफ देने या लेने में पूरी सावधानी रखता है तो दूसरी तरफ उसी समय इसका भी उसे विश्वास एवं ज्ञान रहता है कि यदि किसी ने दस लाख रुपये जमा करायें हैं तो उन रुपयों से वह धनवान नहीं हो रहा है व कोई दस लाख रुपये ले रहा होता है तो वह गरीब नहीं हो रहा है। स्वयं की अनेकान्तमयी समझ के अभ्यास से भी ऐसा ही अनेकान्त हमारे जीवन में उतरेगा। हमारी क्रियाएं इस प्रकार होंगी कि बैंक
SR No.525033
Book TitleSramana 1998 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshokkumar Singh, Shivprasad, Shreeprakash Pandey
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year1998
Total Pages136
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size10 MB
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