SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 91
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 90 : श्रमण / अक्टूबर-दिसम्बर / १६६७ भावनगर मां सन्मान रूपालु, सूनावाला नो प्रेम निहालुं रे । भक्तिभाव सवी जनतारी धारे, धर्म मंगल मन अवधारो रे । । ३० ।। दूहा दैवी प्रकरण पूरण करी, प्रस्तुत विषय जवाय, सूरि आणा मनमां धरी, शिवपुरी विहार कराम । ।१ ।। हिमांशु शिष्य रत्न ग्रही; शासन दीपक नो बिहार, उपदेशे उपकार सही, मार्ग मां अनेक विचार ।।२ ।। रचियता - शास्त्र विशारद जैनाचार्य श्री विजय धर्म सूरि जी के शिष्य न्याय विशारद, न्याय तीर्थ उपाध्याय जी श्री मंगलविजय जी महाराज । "धर्म जीवन प्रदीप" वि०स० १६८४ में प्रकाशित - श्री यशोविजय जैन ग्रन्थमाला भावनगर से संकलित । उपरोक्त परिचय काव्य से स्पष्ट है कि डॉ० काउझे का जैन साहित्य को एक विशिष्ट अवदान रहा है। जैन समाज का कर्त्तव्य है कि ऐसी विदुषी विद्वान् श्राविका का समस्त साहित्य संग्रह कर एक पुस्तक के रूप में उनकी जीवनी और चित्रों सहित प्रकाशित करे। डॉ० क्राउझे की जो निजी लाइब्रेरी थी और उनका समस्त साहित्य भंडारकर रिसर्च इन्स्टीच्यूट, पूना को क्राउझे की वसीयत के अनुसार वहाँ गिरजाघर वालों ने भेज दिया। मुझे हर्ष है कि पार्श्वनाथ विद्यापीठ, वाराणसी के निदेशक डॉ० सागरमल जी जैन ने डॉ० क्राउझे के उपलब्ध साहित्य के संपादन और प्रकाशन के इस गुरुत्तर कार्य को निष्पादित करने के लिये अपनी स्वीकृति दे दी है। इस कार्य के लिये लगभग एक लाख रूपयों की आवश्यकता है। जैन समाज के साहित्य प्रेमी दानदाता उदार भाव से स्वतः प्रेरणा प्राप्त कर अपनी धनराशि के चेक या ड्राफ्ट पार्श्वनाथ विद्यापीठ, वाराणसी२२१००५ के नाम से बनाकर भेजें, ऐसा मेरा नम्र निवेदन है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525032
Book TitleSramana 1997 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshok Kumar Singh
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year1997
Total Pages160
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy