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जर्मन जैन श्राविका डॉ० शेर्लोट क्राउझे : 89
शुद्धि क्रिया सुणे सहु शांत भावे, समकत चाला वो मुख्य धार रे। नाम निक्षेपों भारतीय भावे, देवी सुभद्रा अति मनोहार रे।।१६ ।। व्रताष्टक पण साथ विचारो, अभयचन्द्र तेहमां अवधारो रे। वीर-वाणी शुद्ध घोष प्रचारो, सूरीश्वर-मुखथी मनोहारो रे।।१७।। शुद्धि प्रथम ते जैनोमां जाणो, सूरीश्वर ने मल्यो सारोटाणो रे। भरतीयोनी घणी ने जाणो, यूरोपीयन प्रथम बखाणो रे।।१८ ।। जय जय कार नगर फेलाणो, मले भेद बहुत प्रमाणो रे। धर्म भगिनी सहु पहेचाणो, जैन धर्म व्याख्याने गवाणो रे।।१६ ।। देवी-व्याख्यान सुन्दर शैलीमां, जैन दर्शन बहु प्रमाणो रे। मध्यस्थ भाव अवर दर्शन मां, समभाव बहु उत्साही रे।।२०।। भेद भाव श्रावक नहीं राखे, साधर्मि-वात्सल्य सांचु ते दाखे रे। भोजन आमंत्रणमा बहाने, सत्कार सन्मान न छाने रे।।२१।। पर्युषण पर्व तिहांपूर्ण कीथां, व्याख्यानादिकनों लाभ लीधो रे। शिवपुरी मां पठन-काम सिध्यां, धर्म-रंग जामे प्रसिद्धा रे।।२२।। गुरुदेव-शिष्या मुख्यतेजाणो, विद्या गुरु वारिधि बखाणो रे। सिंदे सरकार महाराणी तणो, परिचय थी धर्म प्रेम जाणो रे।।२३।। एक सप्ताह सौपुर मां पधार्या, महाराणी आमंत्रण बखाणों रे। आचार विचारे देवी ने निहाल्यां, सवी मन आश्चर्य नो राणो रे।।२४।। ओध नियुक्ति सूत्र नो अभ्यास, मंगल विजय पास ते खास रे। रात दिवस ज्ञान ध्यान विलास, अवर नहीं मन वास रे।।२५ ।। व्रत नियम पाले बहु प्रिते, मोहमयी बिहार मां युक्त रे। छात्रों साथे ज्ञान-गोष्ठीने करते, व्याख्यान पब्लीक मां उद्युक्त रे।।२६ ।। ल्हावो धर्मोन्नतिनो सारो लीघौ, सदाचारिणी विदुषी जाणो रे। जहांगीर हॉल मां भाषण कीधुं श्रोताजने वचनामृत पीधुं रे।।२७।। रोम-रोम भाषणनी मांहे, जैनत्वपणुं बहु जलके रे। मौज शोख यूरोपनो त्यागी जैनधर्म माहे रटलागी रे।।२८ ।। धन्य देवी अम सहु गुण गावे, द्वेषी जवासा मुकाई जावे रे। गुजरातनी यात्राओ सिद्धायां, सवी नगरमां सन्मान पायां रे।।२६11
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