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________________ 84 : श्रमण/अक्टूबर-दिसम्बर/१९६७ से ही डॉ० क्राउझे मेधावी छात्रा थीं। जैनधर्म के प्रति आपके मन में असीम अनुराग पैदा हुआ और शास्त्र विशारद श्री विजयधर्म सूरि जी के साथ आपने पत्राचार के माध्यम से जैन धर्म की शिक्षा लेना प्रारंभ कर दिया। मारबर्ग विश्वविद्यालय से अपनी शिक्षा समाप्त कर आप सन् १६२५ में पारसी व जैनधर्म पर अध्ययन करने के लिए सर्वप्रथम बम्बई आईं और वहाँ कुछ दिन ठहर कर आचार्य श्री विजय धर्मसूरि जी के पाटवी शिष्य इतिहासतत्त्व- महोदथि जैनाचार्य श्री विजयेन्द्र सूरीश्वर जी के पास आबू में आईं। जैन धर्म साहित्य और जैन मुनियों के आचार और व्यवहार से प्रभावित होकर आपने जैनधर्म में दीक्षित होना भी स्वीकार कर लिया। शिवपुरी में स्थायी निवास बनाकर आगमों का अध्ययन उपाध्याय मुनि मंगल विजय जी के पास किया। शिवपुरी में आप ग्वालियर की महारानी सिंधिया सैर सपाटे के लिये अक्सर आती रहती थीं। उनसे सम्पर्क होने पर महारानी साहिबा के निर्देशानुसार ग्वालियर के शिक्षा विभाग में डिप्टी डाइरेक्टर पद पर नियुक्त हुईं और कुछ दिन उज्जैन में ही सिंधिया शोध-संस्थान में क्यूरेटर पद पर कार्यरत रहीं। आप जैन साहित्य व आगम का निरन्तर स्वाध्याय करती रहीं। जैनधर्म पर गुजरात, मध्य प्रदेश, कलकत्ता में कई जगह भाषण भी दिये जो इतने प्रभाविक रहे कि इनकी विद्वता की सुगन्ध सर्वत्र : फैलने लगी। डॉ० क्राउझे ने जो तीन महत्त्वपूर्ण भाषण दिये वे पुस्तिका के रूप में श्री यशोविजय जैन ग्रन्थमाला, भावनगर से प्रकाशित हुए। जिनके नाम इस प्रकार हैं 1. An Interpretation of Jaina ethics 2. A Kaleidoscope of Indian wisdom. 3. The Heritage of the last Arhat. जब ये पुस्तिकायें देश-विदेश भेजी गईं तो इनकी सर्वत्र प्रशंसा हुई। इनके प्रशंसकों में हेमबुर्ग (जर्मनी) के एल० ऑल्सडोर्फ, बोन (जर्मनी) के डॉ० हर्मन जैकोबी के अलावा नार्वे, स्वीडन, चेकोस्लोवाकिया, रूस, अमेरिका, इंग्लैण्ड, फ्रांस आदि के विदेशी विद्वान मुख्य थे। इनमें से कई विद्वानों ने डॉ० क्राउझे को बधाई देने के लिये आचार्य श्री विजयेन्द्रसूरि जी को पत्र दिये। ये पत्र “लेटर्स टू विजयेन्द्रसूरि" पुस्तक में सन् १६३६ में प्रकाशित हुए हैं। डॉ० क्राउझे के लेख सन् १६२२ से ही लेपज़िग की पत्र-पत्रिकाओं में छपने Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525032
Book TitleSramana 1997 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshok Kumar Singh
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year1997
Total Pages160
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size7 MB
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