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________________ जैन आगमों की मूल भाषा अर्धमागधी या शौरसेनी : 5 अरिहाधम्मं परिकहइ । - औपपातिकसूत्र. ३. गोयमा । देवाणं अद्धमागहीए भासाए भासंति सवियणं अद्धमागहा भासा भासिज्जमाणी विसज्जति। -भगवई, लाडनूंः शतक५ उद्देशक ४ सूत्र ६३. ४. तए णं समणे भगवं महावीरे उसभदत्त माहणस्स देवाणंदा माहणीए तीसे य महति महलियाए इसिपरिसाए मुणिपरिसाए जइपरिसाए.... सव्व भासणुगामणिए सरस्सईए जोयणणीहारिणासरेणं अद्धम गहाए भासाए भासइ धम्मं परिकहइ । भगवई लाडनूं, शतक ६, उद्देशक ३३, सूत्र १४६. ५. तए णं समणे भगवं महावीरे जामालिस्स खत्तियकुमारस्स..अद्धमागहाए भासाए भासइ धम्मं परिकहइ। -भगवई, लाडनूः शतक ६, उद्देशक ३३, सूत्र १६३. ६. सव्वसत्तसमदरिसीहिं अर्द्धमागहीए भासाए सुत्तं उवदिट्ठं । - आचारांग चूर्णि, जिनदासगणि पृ० २५५. मात्र इतना ही नहीं, दिगम्बर परम्परा में मान्य आचार्य कुन्दकुन्द के ग्रन्थ बोधपाहुड, जो स्वयं शौरसेनी में निबद्ध हैं, उसकी टीका में दिगम्बर आचार्य श्रुतसागर जी लिखते हैं कि भगवान् महावीर ने अर्धमागधी भाषा में अपना उपदेश दिया । प्रमाण के लिये उस टीका के अनुवाद का वह अंश प्रस्तुत है । -अर्थ मगध देश भाषात्मक और अर्ध सर्वभाषात्मक भगवान् की ध्वनि खिरती है। शंका -अर्धमागधी भाषा देवकृत अतिशय कैसे हो सकती है, क्योंकि भगवान् की भाषा ही अर्धमागधी है ? उत्तर - मगध देव के सान्निध्य से होने से आचार्य प्रभाचन्द्र ने नन्दीश्वर भक्ति के अर्थ में लिखा है- “एक योजन तक भगवान् की वाणी स्वयंमेव सुनाई देती है उसके आगे संख्यात योजनों तक उस दिव्यध्वनि का विस्तार मगध जाति के देव करते हैं। अतः अर्धमागधी भाषा देवकृत है । ( षट्प्राभृतम् चतुर्थ बोधपाहुड टीका पृ० १७६/३२) 1 मात्र यही नहीं वर्तमान में भी दिगम्बर परम्परा के महान् संत एवं आचार्य विद्यासागर जी के प्रमुख शिष्य मुनि श्री प्रमाण सागरजी अपनी पुस्तकं जैनधर्मदर्शन, में लिखते हैं कि उन भगवान् महावीर का उपदेश सर्वग्राह्य अर्धमागधी भाषा में हुआ । जब श्वेताम्बर और दिगम्बर दोनों ही परम्पराएँ यह मानकर चल रही हैं कि भगवान् का उपदेश अर्धमागधी में हुआ था और इसी भाषा में उनके उपदेशों के आधार पर आगमों का प्रणयन हुआ तो फिर शौरसेनी के नाम से नया विवाद खड़ा करके Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525032
Book TitleSramana 1997 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshok Kumar Singh
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year1997
Total Pages160
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size7 MB
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