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________________ 4 : श्रमण/अक्टूबर-दिसम्बर/१६६७ के कर्ता हरिभद्रसूरि और धवला के कर्ता में कौन पहले हुआ है? यह तो ऐतिहासिक सत्य है कि हरिभद्रसूरि का योगशतक (आठवीं शती) धवला (१०वीं शती) से पूर्ववर्ती है। मुझे विश्वास ही नहीं होता हैं, कि टॉटिया जी जैसा विद्वान् इस ऐतिहासिक सत्य को अनदेखा कर दे। कहीं न कहीं उनके नाम पर कोई भ्रम खड़ा किया जा रहा है। डॉ० टॉटिया जी को अपनी चुप्पी तोड़कर इस भ्रम का निराकरण करना चाहिए । वस्तुतः यदि कोई भी चर्चा प्रमाणों के आधार पर नहीं होती है तो उसे कैसे मान्य किया जा सकता है, फिर चाहे उसे कितने ही बड़े विद्वान ने क्यों न कहा हो? यदि व्यक्ति का ही महत्त्व मान्य है, तो अभी संयोग से टॉटिया जी से भी वरिष्ठ अन्तर्राष्ट्रीय ख्याति के जैन बौद्ध विद्याओं के महामनीषी और स्वयं टॉटिया जी के गुरु पद्मविभूषण पं० दलसुखभाई मालवणिया हमारे बीच हैं, फिर तो उनके कथन को अधिक प्रामाणिक मानकर प्राकृत-विद्या के सम्पादक को स्वीकार करना होगा। खैर यह सब प्रास्ताविक बातें थीं, जिससे यह समझा जा सके कि समस्या क्या है, कैसे उत्पन्न हुई और प्रस्तुत स्पष्टीकरण की क्या आवश्यकता है? हमें तो व्यक्तियों के कथनों या वक्तव्यों पर न जाकर तथ्यों के प्रकाश में इसकी समीक्षा करनी है कि आगमों की मूलभाषा क्या थी और अर्धमागधी और शौरसेनी में कौन प्राचीन है? आगमों की मूलभाषा अर्धमागधी - यह एक सुनिश्चित सत्य है कि महावीर का जन्मक्षेत्र और कार्यक्षेत्र दोनों ही मुख्य रूप से मगध और उसके समीपवर्ती क्षेत्र में ही था, अतः यह स्वाभाविक है कि उन्होंने जिस भाषा को बोला होगा वह समीपवर्ती क्षेत्रीय बोलियों से प्रभावित मागधी अर्थात् अर्धमागधी ही रही होगी। व्यक्ति की भाषा कभी भी अपनी मातृभाषा से अप्रभावित नहीं होती है। पुनः श्वेताम्बर परम्परा में मान्य जो भी आगम साहित्य आज उपलब्ध हैं, उनमें अनेक ऐसे सन्दर्भ हैं, जिनमें स्पष्ट रूप से यह उल्लेख है कि महावीर ने अपने उपदेश अर्धमागधी भाषा में दिये थे। इस सम्बन्ध में अर्धमागधी आगम साहित्य से कुछ प्रमाण प्रस्तत किये जा रहे हैं यथाः१. भगवं च णं अद्धमागहीए भासाए धम्ममाइक्खइ। - समवायांग, समवाय ३४ सूत्र २२. २. तए णं समणे भगवं महावीरे कुणिअस्स भंभसारपुतस्स अद्धमागहीए भासाए भासत्ति Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525032
Book TitleSramana 1997 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshok Kumar Singh
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year1997
Total Pages160
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size7 MB
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