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68 : श्रमण/अक्टूबर-दिसम्बर/१६६७
८. आयतचक्खू लोगविपस्सी लोगस्स अहोभागं जाणति, उड्ढं भागं जाणति, तिरियं भागं
जाणति। वही-१/२/५/६१ ६. पं० दलसुखभाई मालवणिया, जैन दर्शन का आदिकाल, श्री पुष्कर मुनि अभिनन्दन
ग्रंथ, पुष्कर मुनि अभिनदन ग्रंथ पृ० २४१-२४२. १०. सूत्रकृतांगसूत्र, संपा० मधुकर मुनि, जिनागम ग्रंथमाला, ग्रंथांक- ६, आगम प्रकाशन
समिति ब्यावर, १६८२, १/४/७६-७६ ११. वही - १/६/४३७-४४३ १२. वही १३. वही - १/६/४६४-४७२ १४. वही - १/६, ४३७ १५. बुद्धस्स आणाए इमं समाहिं, अस्सि सुठिच्चा तिविहेण ताती।तरिउं समुदं व महाभवोधं
आयाणवं धम्ममुदाहरेज्जासि ।। सूत्रकृतांगसूत्र, संपा० युवाचार्य मधुकर मुनि,
जिनागम ग्रंथमाला, ग्रंथांक-१०, आगम प्रकाशन समिति, ब्यावर, १६८२,-२/६/८४१ १६. तं जहा-अणारंभा अपरिग्गहा धम्मिया धम्माणुगा धम्मिट्ठ। जाव धम्मेणं चेव वित्तिं .
कप्पेमाणा विहरंति, सुसीला सुव्वता सुप्पडियाणंदा -------ततो वि पांडिविरता
जावज्जीवाए। वही-२/२/७१४. १७. वही - २/५/७६५-७८१. १८. पं० दलसुखभाई मालवणिया, जैनदर्शन का आदिकाल, लालभाई, दलपतभाई भारतीय
संस्कृति विद्यामंदिर, अहमदाबाद, १६८०, पृ० ३४. १६. वही -पृ० ३४-३५. २०. एगे लोए । एगे अलोए। एगे धम्मे। एगे अधम्मे। एगे बंधे। एगे मोक्खे। एगे पुण्णे।
एगे पावे। एगे आसवे। एगे संवरे। एगे वेयणा। एगे णिज्जरा। स्थानांगसूत्र, संपा०-मधुकर मुनि, जिनागम ग्रंथमाला, ग्रंथांक-७, आगम प्रकाशन समिति ब्यावर
१६८१, १/५-१६. २१. दुविहा दव्वा पण्णत्ता, तं जहा-गतिसमावण्णगा चेव, अगतिसमावण्णगा चेव।
वही-२/१/१४४. २२. तिविहे धम्मे पण्णत्ते, तं जहा-सुयधम्मे, चरित्तधम्मे, अत्थिकायधम्मे। वही-३/३/४१०.
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