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श्रमण
दशाश्रुतस्कन्धनिर्युक्तिः अन्तरावलोकन
- डॉ० अशोक कुमार सिंह*
अर्धमागधी जैनागमों पर प्राचीनतम व्याख्या के रूप में आचार्य भद्रबाहु निबद्ध दस निर्युक्तियों में से आज उपलब्ध आठ निर्युक्तियों में छेदसूत्र दशाश्रुतस्कन्ध निर्युक्ति भी एक है | आकार की दृष्टि से यह सबसे छोटी है। इसके दो प्रकाशित संस्करण उपलब्ध हैं- मूल और चूर्णि सहित मणिविजय गणि ग्रन्थमाला, भावनगर ' १६५४ और “निर्युक्तिसङ्ग्रह” शीर्षक के अन्तर्गत सभी उपलब्ध नियुक्तियों के साथ विजयजिनेन्द्रसूरि द्वारा सम्पादित लाखाबावल २९, १६८६ संस्करण । इसके अतिरिक्त निशीथसूत्रभाष्य - चूर्णि के साथ इसके आठवें पर्युषणाकल्प अध्ययन की सभी क्रमांक (५२-११८) गाथायें प्रकाशित *हैं। विद्वद्वर्य मुनिश्री पुण्यविजय जी द्वारा कल्पसूत्र के साथ भी पर्युषणाकल्प अध्ययन की नियुक्ति गाथायें प्रकाशित हैं।
भावनगर संस्करण में १४१ गाथायें और लाखाबावल संस्करण में १४२ गाथायें प्राप्त होती हैं । लाखाबावल में भूलवश क्रमांक ११० के पश्चात् ११२ मुद्रित होने से यह संख्या - वृद्धि हो गयी है, वैसे दोनों संस्करणों की गाथा संख्या १४१ ही है । सम्भव है लाखाबावल संस्करण का पाठ, भावनगर संस्करण से लिया गया हो, यद्यपि सम्पादक ने इस तथ्य का उल्लेख नहीं किया है ।
जैन पाण्डुलिपियों की सूचना देने वाले कैटलागों और जैन साहित्य के इतिहास के ग्रन्थों में इसकी गाथा संख्या के सम्बन्ध में प्राप्त विवरण में भिन्नता है । 'गवर्नमेण्ट कलेक्शन आव मैनुस्क्रिप्ट्स' (संग्रा० एच०आर० कापडिया ) में इसकी गाथा सं० १५४ बताई गई है। 'जैन साहित्य का बृहद् इतिहास' भाग- एक में भी इसकी गाथा सं० १५४ है ।' जिनरत्नकोश" में यह सं० १४४ है । कापडिया लिखित 'ए हिस्ट्री आव जैन कैननिकल * वरिष्ठ प्रवक्ता, पार्श्वनाथ विद्यापीठ वाराणसी ।
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