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________________ 10 : श्रमण / अक्टूबर-दिसम्बर / १६६७ की प्रतिलिपियाँ मुख्यतः गुजरात एवं राजस्थान में हुईं, अतः उन पर महाराष्ट्री का प्रभाव आ गया। ५. भारत में कागज का प्रचलन न होने से भोजपत्रों या ताड़पत्रों पर ग्रन्थों को लिखवाना और उन्हें सुरक्षित रखना जैन मुनियों की अहिंसा एवं अपरिग्रह की भावना के प्रतिकूल था। लगभग ई० सन् की ५वीं शती तक इस कार्य को पाप प्रवृत्ति माना जाता था तथा इसके लिए दण्ड की व्यवस्था भी थी। फलतः महावीर के पश्चात् लगभग १००० वर्ष तक जैन साहित्य श्रुत परम्परा पर ही आधारित रहा । आगमों के भाषिक स्वरूप में वैविध्य आ गया । ६. आगमिक एवं आगम-तुल्य साहित्य में आज भाषिक रूपों का जो वैविध्य देखा जाता है, उसका एक कारण लहियों (प्रतिलिपिकारों) की असावधानी भी रही है । प्रतिलिपिकार जिस क्षेत्र का होता था, उस पर भी उस क्षेत्र की बोली / भाषा का प्रभाव रहता था और असावधानी से अपनी प्रादेशिक बोली के शब्द रूपों को लिख देता था । उदाहरण के रूप में चाहे मूलपाठ में " गच्छति” लिखा हो लेकिन यदि उस क्षेत्र में प्रचलन में " गच्छइ" का व्यवहार है, तो प्रतिलिपिकार “गच्छइ" रूप ही लिख देगा । ७. जैन आगम एवं आगम तुल्य ग्रन्थों में आये भाषिक परिवर्तनों का एक कारण यह भी है कि वे विभिन्न कालों एवं प्रदेशों में सम्पादित होते रहे हैं । सम्पादकों ने उनके प्राचीन स्वरूप को स्थिर रखने का प्रयत्न नहीं किया, अपितु उन्हें सम्पादित करते समय अपने युग एवं क्षेत्र की प्रचलित भाषा और व्याकरण के आधार पर उनमें परिवर्तन भी कर दिया । यही कारण हैं कि अर्धमागधी में लिखित आगम भी जब मथुरा में संकलित एवं सम्पादित हुए तो उनका भाषिक स्वरूप अर्धमागधी की अपेक्षा शौरसेनी के निकट हो गया, और जब वलभी में लिखा गया तो वह महाराष्ट्री से प्रभावित हो गया । यह अलग बात है कि ऐसा परिवर्तन सम्पूर्ण रूप में न हो सका और उसमें अर्धमागधी के तत्त्व भी बने रहे । अतः अर्धमागधी और शौरसेनी आगमों में भाषिक स्वरूप का जो वैविध्य है, वह एक यथार्थता है, जिसे हमें स्वीकार करना होगा । क्या शौरसेनी आगमों के भाषिक स्वरूप में एकरूपता है ? किन्तु डॉ० सुदीप जैन का दावा है कि "आज भी शौरसेनी आगम साहित्य Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525032
Book TitleSramana 1997 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshok Kumar Singh
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year1997
Total Pages160
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size7 MB
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