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________________ ४. ५. ६. ७. ८. ११. श्रमण/जुलाई-सितम्बर / १२९७ जसदेवि दूल्हेवि श्रीयादेवि सरली वालमत समस्त श्राविका नागपंचमी तपकृत निर्जरार्थं च लिखापिता अर्पिता च अत्रस्त साध्वी मीनागणि नंदागणि तस्य सिसिणी लषमी देमत ---- मुनि जिनविजय, संपा० जैनपुस्तकप्रशस्तिसंग्रह, सिघी जैन ग्रन्थमाला, ग्रन्थांक १८, मुम्बई. १९४३ ई० स०, पृष्ठ, १०३ Muni Punya Vijaya, Ed. New Catalogue of Prakrit & Sanskrit Mss. Jesalmer Collection, L.D. Series No. 36, Ahmedabad 1972 A.D., P. 99-101. ४८ Ibid, P- 85-87. पण्डिता भयकुमारगणये पुस्तकं ददे । वाचनार्थं जयत्येदं स्वमात्रो : पुण्यवृद्धये ॥२४॥ Ibid, P-87. श्री अमृतलाल मगनलाल शाह, संपा०, श्रीप्रशस्तिसंग्रह, श्री जैन साहित्य प्रदर्शन, श्री देशविरति धर्माराजक समाज, अहमदाबाद वि० सं० १९९३, भाग २, पृष्ठ ३१. पूरनचंद नाहर, जैनलेखसंग्रह भाग १, लेखांक ४२२. इति श्रीपार्वतीपुत्रनित्यनाथसिद्धविरचिते रसरत्नाकरे मन्वखण्डे मोहनाद्युच्चाटन नाम नवमोपदेशः । संवत् १५९८ वर्षे आसो वदि १० गुरु । श्रीब्रह्माणगच्छे पूज्यभट्टारक ६ विमलसूरि वा० श्रीसाधुकीर्ति - तत्शिष्येण वा० शिवसुन्दरलक्षि (लिखि) तं परोपकाराय मंगल्य (ल) श्रेयसे भवतु ॥ वढीआरमद्धे ( ध्ये) बोलिराग्रामे चातुर्मासिके स्थिता लक्षि (लिखि) तम् A.P. Shah. Ed. Catalogue of Sanskrit & Prakrit Mss. Muni Shree PunyaVijayaji,s Collection, Part II, L. D. Series No-5, Ahmedabad 1965 A.D., P-270, No. 4627. ९-१०. मोहनलाल दलीचंददेसाई, जैनगूर्जरकविओ, भाग १, द्वितीय संशोधित संस्करण, संपादक, डा० जयन्त कोठारी, मुम्बई १९८६ ई० स०, पृष्ठ ३७६-३७७, उवझाय भावक कहि, रखे कोइनि हिणंति । शिष्य ज लख्यमीसागरह, कारण करिउ प्रबंध ॥ वही, भाग १, पृष्ठ ३७९. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525031
Book TitleSramana 1997 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshok Kumar Singh
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year1997
Total Pages144
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size6 MB
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