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ब्रह्माणगच्छ का इतिहास
शिवप्रसाद निर्ग्रन्थ परम्परा के श्वेताम्बर आम्नाय में पूर्वमध्यकाल में प्रकट हुए विभिन्न चैत्यवासी गच्छों में ब्रह्माणगच्छ भी एक है । जैसा कि इसके अभिधान से स्पष्ट होता है, यह गच्छ अर्बुदगिरि के निकट स्थित ब्रह्माण' (वर्तमान वरमाण) नामक स्थान से अस्तित्व में आया । ब्रह्माणगच्छ से सम्बद्ध बड़ी संख्या में अभिलेखीय साक्ष्य प्राप्त होते हैं जो वि० सं० ११२४/ई० सं० १०७८ से लेकर वि० सं० १५७६/ ई० सं० १५२० तक के हैं । अभिलेखीय साक्ष्यों की तुलना में इस गच्छ से सम्बद्ध साहित्यिक साक्ष्य संख्या की दृष्टि से प्रायः नगण्य ही हैं ।
ब्रह्माणगच्छ से सम्बद्ध सर्वप्रथम साहित्यिक साक्ष्य है नवपदप्रकरण की वि०सं० ११९२/ई० सं० ११३६ में लिखी गयी दाताप्रशस्तिः, जिसमें इस गच्छ के विमलाचार्य के एक श्रावक शिष्य द्वारा उक्त ग्रन्थ की प्रतिलिपि तैयार करवा कर वहां विराजित साध्वियों को पठनार्थ दान में देने का उल्लेख है । चूंकि इस प्रशस्ति में ब्रह्माणगच्छ के एक आचार्य के नामोल्लेख के अतिरिक्त कोई अन्य ऐतिहासिक सूचना प्राप्त नहीं होती, फिर भी इस गच्छ से सम्बद्ध और अद्यावधि उपलब्ध प्राचीनतम साहित्यिक साक्ष्य होने से यह प्रशस्ति महत्त्वपूर्ण मानी जा सकती है ।
ब्रह्माणगच्छ से सम्बद्ध द्वितीय साहित्यिक साक्ष्य है वि० सं० १२१७/ ई० स० ११६१ में लिखी गयी चन्द्रप्रभचरित की दाताप्रशस्ति ; जिसके अन्त में इस गच्छ : के पं० अभयकुमार का नाम मिलता है।
भवभावनाप्रकरण की वि० सं० १२८० में लिखी गयी दाता-प्रशस्ति के अनुसार ब्रह्माणगच्छ की चन्द्रशाखा में देवचन्द्रसूरि हुए । उनके पट्टधर मुनिचन्द्रसरि हए, जिन्होंने वि० सं० १२४०/ ई० स० ११८४ में पद्रग्राम (पादरा) में उक्त ग्रन्थ की प्रथम बार वाचना की । मुनिचन्द्रसूरि के शिष्य वाचनाचार्य अभयकुमार हुए जिन्होंने वि० सं० १२४८ में द्वितीय बार इस ग्रन्थ की वाचना की । इसी प्रकार वि० सं० १२५३, १२६५ और १२८० में भी इस ग्रन्थ की वाचना होने का इस प्रशस्ति में उल्लेख है । प्रशस्ति के अन्त में पं० अभयकुमारगणि को उक्त ग्रन्थ भेंट में देने की बात कही गयी है ।
इस प्रकार उक्त दोनों प्रशस्तियों में पं० अभयकुमार का नाम समान रूप से मिलता है। यद्यपि इन दोनों प्रशस्तियों के मध्य ६३ वर्षों की दीर्घ कालावधि (वि० सं० १२१७ से वि० सं० १२८०) का अन्तराल है, तथापि इतने लम्बे काल तक किसी भी व्यक्ति का सामाजिक या धार्मिक क्रियाकलापों में संलग्न रहना नितान्त असंभव नहीं लगता । चूंकि ब्रह्माणगच्छ सर्वसुविधासम्पन्न एक चैत्यवासी गच्छ था और ★ प्रवक्ता - पार्श्वनाथ विद्यापीठ ।
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