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________________ त्रमण, जलाई-सितम्बर/१९९७ : ११५ अवधारणा शीर्षक' पर शोधपत्र प्रस्तुत किया । जैन आगमों में प्राप्त काल विषयक तथ्यों का विवेचन करते हुए श्वेताम्बर और दिगम्बर परम्परा में काल विषयक अवधारणा का तुलनात्मक अध्ययन प्रस्तुत किया । डॉ० सिंह ने काल के परमार्थ और व्यवहार पक्ष का विवरण प्रस्तुत किया एवं जैनाचार्यों द्वारा काल सम्बन्धी जिन समस्याओं पर विचार किया गया है उनपर भी प्रकाश डाला ।। सत्राध्यक्ष प्रो० रघुनाथ गिरि ने अपने विद्वत्तापूर्ण व्याख्यान में काल संबंधी सैद्धांतिक एवं व्यावहारिक मान्यताओं पर प्रकाश डाला । इन्होंने भारतीय चिन्तन में परिव्याप्त काल संबंधी विभिन्न प्रकार की समस्याओं पर भी अपने विचार व्यक्त किए। ____ मुख्य वक्ता प्रो० रामजी सिंह ने काल संबंधी अपने ओजस्वी एवं प्रभावशाली चिन्तन से उपस्थित विद्वानों को मंत्रमुग्ध कर दिया । इन्होंने काल को एक समस्या न मानकर इसे जीवन का एक अभिन्न पक्ष कहा, जो सर्वदा से इससे युक्त है। इन्होंने काल संबंधी अवधारणा को मानव जीवन के सौन्दर्यात्मक आनुभूतिक पक्ष-कला, नृत्य, गायन आदि का एक अनिवार्य घटक माना । इनका काल चिन्तन संस्कृत साहित्य के छन्दों में भी मुखर प्रतीत होता रहा जो दार्शनिक कल्पनाओं एवं चिन्तन की पराकाष्ठा से मिलकर अपने अवसान को प्राप्त किया । प्रो० राम सिंह जी का यह व्याख्यान वस्तुत: सत्र समापन के रूप में इस चिन्तन का पड़ाव नहीं माना जा सकता, क्योंकि इसने काल संबंधी विविध नवीन तथ्यों की ओर संकेत किया जो सर्वथा नूतन मत उद्घाटित करने की क्षमता रखता है । विद्यापीठ के मानद मंत्री माननीय श्री भूपेन्द्रनाथ जी जैन ने संगोष्ठी में पधारे विद्वानों एवं अतिथियों का स्वागत करते हुए उनसे विद्यापीठ के प्रति सद्भाव एवं सहयोग की अपेक्षा की। विद्यापीठ की प्रबन्ध समिति के संयुक्त सचिव श्री इन्द्रभूति बरार ने संस्थान की तरफ से सभी आगन्तुक विद्वानों एवं अतिथियों का आभार प्रदर्शन किया तथा संगोष्ठी को सफल बनाने में परोक्ष एवं प्रत्यक्ष रूप से अपना योगदान देने वाले सभी लोगों के प्रति अपना आभार प्रकट किया । संगोष्ठी का आयोजन डॉ० अशोक कुमार सिंह, वरिष्ठ प्रवक्ता, एवं कुशल संचालन डॉ० श्रीप्रकाश पाण्डेय, प्रवक्ता पार्श्वनाथ विद्यापीठ ने किया । संगोष्ठी को सफल बनाने में संस्थान के अन्य शिक्षक एवं सहयोगी डॉ० शिव प्रसाद, डॉ० रज्जन कुमार, डॉ० सुधा जैन, डॉ० असीम कुमार मिश्र, डॉ० जयकृष्ण त्रिपाठी, डॉ. विजय कुमार, श्री ओमप्रकाश सिंह एवं श्री राकेश सिंह का अपेक्षित सहयोग मिला । आगन्तुक अतिथियों के जलपान एवं भोजन की सुव्यवस्था के लिए डॉ० श्रीप्रकाश पाण्डेय एवं डॉ. सुधा जैन की सभी ने मुक्त कंठ से सराहना की। ___ काल सम्बन्धी यह एक दिवसीय संगोष्ठी कई अर्थों में महत्त्वपूर्ण रही, विशेष रूप से पार्श्वनाथ विद्यापीठ की शैक्षणिक गतिविधियों के लिए नवीन ऊर्जा प्रदायक रही। -डा० रज्जन कुमार Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525031
Book TitleSramana 1997 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshok Kumar Singh
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year1997
Total Pages144
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size6 MB
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