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________________ ६८ आचार्य हेमचन्द्र : एक युगपुरुष और व्याकरण ग्रन्थों के अतिरिक्त हेमचन्द्र ने काव्यानुशासन जैसे अलंकार ग्रन्थ और छन्दोनुशासन जैसे छन्दशास्त्र के ग्रन्थ की रचना भी की। विशेषता यह है कि इन सैद्धान्तिक ग्रन्थों में उन्होंने संस्कृत भाषा के साथ-साथ प्राकृत और अपभ्रंश के उपेक्षित व्याकरण की भी चर्चा की। इन सिद्धान्तों के प्रायोगिक पक्ष के लिये उन्होंने संस्कृत-प्राकृत में व्याश्रय जैसे महाकाव्य की रचना की है। हेमचन्द्र मात्र साहित्य के ही विद्वान् नहीं थे अपितु धर्म और दर्शन के क्षेत्र में भी उनकी गति निर्बाध थी। दर्शन के क्षेत्र में उन्होंने अन्ययोगव्यवच्छेदद्वात्रिंशिका, अयोगव्यवच्छेदद्वात्रिंशिका और प्रमाणमीमांसा जैसे प्रौढ़ ग्रन्थ रचे तो धर्म के क्षेत्र में योगशास्त्र जैसे साधनाप्रधान ग्रन्थ की भी रचना की। कथा साहित्य में उनके द्वारा रचित त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित का अपना विशिष्ट महत्त्व है। हेमचन्द्र ने साहित्य, काव्य, धर्म और दर्शन जिस किसी विधा को अपनाया उसे एक पूर्णता प्रदान की। उनकी इस विपुल साहित्यसर्जना का ही परिणाम था कि उन्हें कलिकालसर्वज्ञ की उपाधि प्रदान की गयी। साहित्य के क्षेत्र में हेमचन्द्र के अवदान को समझने के लिये उनके द्वारा रचित ग्रन्थों का किंचित् मूल्यांकन करना होगा। यद्यपि हेमचन्द्र के पूर्व व्याकरण के क्षेत्र में पाणिनीय व्याकरण का अपना महत्त्व था, उस पर अनेक वृत्तियाँ और भाष्य लिखे गए, फिर भी वह विद्यार्थियों के लिये दुर्बोध ही था। व्याकरण के अध्ययन एवं अध्यापन की नई, सहज एवं बोधगम्य प्रणाली को जन्म देने का श्रेय हेमचन्द्र को है। यह हेमचन्द्र का ही प्रभाव था कि परवर्तीकाल में ब्राह्मण परम्परा में इसी पद्धति को आधार बनाकर ग्रन्थ लिखे गए और पाणिनि के अष्टाध्यायी की प्रणाली पठन-पाठन से धीरे-धीरे उपेक्षित हो गयी। हेमचन्द्र के व्याकरण की एक विशेषता तो यह है कि आचार्य ने स्वयं उसकी वृत्ति में कतिपय शिक्षा-सूत्रों को उद्धृत किया है। उनके व्याकरण की दूसरी विशेषता यह है कि उनमें संस्कृत के साथ-साथ प्राकृत के व्याकरण भी दिये गए हैं। व्याकरण के समान ही उनके कोशग्रन्थ, काव्यानुशासन और छन्दोनुशासन जैसे साहित्यिक सिद्धान्त-ग्रन्थ भी अपना महत्त्व रखते हैं। त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित और परिशिष्टपर्व के रूप में उन्होंने जैनधर्म की पौराणिक और ऐतिहासिक सामग्री का जो संकलन किया है, वह भी निश्चय ही महत्त्वपूर्ण है। यहाँ उनकी योगशास्त्र, प्रमाणमीमांसा आदि सभी कृतियों का मूल्यांकन सम्भव नहीं है, किन्तु परवर्ती साहित्यकारों द्वारा किया गया उनका अनुकरण इस बात को सिद्ध करता है कि उनकी प्रतिभा से न केवल उनका शिष्यमण्डल अपितु परवर्ती जैन या जैनेतर विद्वान् भी प्रभावित हुए। मुनि श्री पुण्यविजयजी ने हेमचन्द्र की समग्र कृतियों का Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525030
Book TitleSramana 1997 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshok Kumar Singh
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year1997
Total Pages228
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size10 MB
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