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________________ जैन, बौद्ध और हिन्दू धर्म का पारस्परिक प्रभाव ५५ उसका आह्वान और विसर्जन किया जाता है, उसी प्रकार जैन-परम्परा में भी पूजा के समय जिन के आह्वान और विसर्जन के मन्त्र बोले जाते हैं। यथा – ॐ ह्रीं णमों सिद्धाणं सिद्धपरमेष्ठिन् अत्र अवतर अवतर संवोषट्। ॐ ह्रीं णमों सिद्धाणं सिद्धपरमेष्ठिन् अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः। ॐ ह्रीं णमों सिद्धाणं सिद्धपरमेष्ठिन् अत्र मम सनिहतो भवभव वषट्। ॐ ह्रीं णमों सिद्धाणं सिद्धपरमेष्ठिन् स्वस्थानं गच्छ गच्छ ज: ज: जः। ये मन्त्र जैनदर्शन की मूलभूत मान्यताओं के प्रतिकूल हैं। क्योंकि जहाँ ब्राह्मण-परम्परा का यह विश्वास है कि आह्वान करने पर देवता आते हैं और विसर्जन करने पर चले जाते हैं। वहाँ जैन-परम्परा में सिद्धावस्था को प्राप्त तीर्थङ्कर न तो आह्वान करने पर उपस्थित हो सकते हैं और न विसर्जन करने पर जा ही सकते हैं। पं० फूलचन्दजी ने “ज्ञानपीठ पूजांजलि'' की भूमिका में विस्तार से इसकी चर्चा की है तथा आह्वान एवं विसर्जन सम्बन्धी जैन मन्त्रों की ब्राह्मण मन्त्रों से समानता भी दिखाई है। तुलना कीजिये - आवाहनं नैव जानामि नैव जानामि पूजनम् । विसर्जनं न जानामि क्षमस्व परमेश्वर ।। १ ।। मन्त्रहीनं क्रियाहीनं द्रव्यहीनं तथैव च ।। तत्सर्वं क्षम्यतां देव रक्ष रक्ष जिनेश्वर ।। २ ।। – विसर्जनपाठ इसके स्थान में ब्राह्मणधर्म में ये श्लोक उलब्ध होते हैं - आवाहनं न जानामि न जानामि विसर्जनम् । पूजनं नैव जानामि क्षमस्व परमेश्वर ।। १ ।। मन्त्रहीनं क्रियाहीनं भक्तिहीनं जनार्दन । यत्पूजितं मया देव परिपूर्ण तदस्तु मे ।। २ ।। इसी प्रकार पंचोपचारपूचा, अष्टद्रव्यपूजा, यज्ञ का विधान, विनायकयन्त्र-स्थापना, यज्ञोपवीतधारण आदि भी जैन-परम्परा के अनुकूल नहीं हैं। किन्तु जब पौराणिक धर्म का प्रभाव बढ़ने लगा, तो पंचोपचारपूजा आदि विधियों का प्रवेश हुआ। दसवीं शती के अनन्तर इन विधियों को इतना महत्त्व प्राप्त हुआ, जिससे पूर्व प्रचलित विधि गौण हो गयी। प्रतिमा के समक्ष रहने पर भी आह्वान, सनिधिकरण, पूजन और विसर्जन क्रमश: पंचकल्याणकों की स्मृति के लिये व्यवहत होने लगे। पूजा को वैयावृत्य का अंग माना जाने लगा तथा एक प्रकार से इसे 'आहारदान' के तुल्य महत्त्व प्राप्त हुआ। इस प्रकार पूजा के समय Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525030
Book TitleSramana 1997 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshok Kumar Singh
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year1997
Total Pages228
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size10 MB
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