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________________ दशाश्रुतस्कन्धनियुक्ति में इङ्गित दृष्टान्त : ४९ अप्पिणह तं बइल्लं दुरुतग्ग! तस्स कुंभयारस्स । मा भे डहीहि गामं अन्नाणि वि सत्त वासाणि ।।९।। एक कुम्हार मिट्टी के बर्तनों से भरी बैलगाड़ी लेकर द्विरुक्तक (दो अर्थी भाषा बोलने वाले) नाम के समीपवर्ती गाँव में पहुँचा। कुम्हार का एक बैल चुराने के अभिप्राय से द्विरुक्तकों ने कहा--- हे! हे! लोगों! आश्चर्य देखो! एक बैलवाली गाड़ी है। इस पर कुम्हार बोलों-हे लोगों! देखो! इस गाँव का खलिहान जल रहा है और उसने गाड़ी गाँव के बीच ले जाकर खड़ी कर दी। मौका देखकर गाँव वालों ने उसका एक बैल चुरा लिया। बर्तन बिक जाने के बाद वापस आकर उसने गाँव वालों से बैल वापस देने की बार-बार याचना की। गाँव वालों ने कहा- तुम एक ही बैल के साथ आये हो। बैल वापस न मिलने से क्रुद्ध कुम्हार शरदकाल में गाँव वालों के धान्य से भरे खलिहान को लगातार सात वर्ष तक आग लगाता रहा। आँठवें वर्ष गाँव वाले इकट्ठे होकर घोषणा करवाये कि जिसके प्रति भी हमने अपराध किया है, वह हमें क्षमा करे, परिवार सहित हमारा नाश न करे। तब कुम्हार बोला- बैल मुझे वापस दो। बैल मिल जाने पर उसने गाँव वालों को क्षमा कर दिया। यदि उन असंयत अज्ञानी लोगों द्वारा स्वकृत अपराध हेतु क्षमा माँगी गयी और उस असंयमी कुम्हार ने क्षमा भी कर दिया, तो पुन: संयत ज्ञानियों द्वारा भी अपने प्रति किये गये अपराध के लिए पर्युषण पर्व में अवश्य क्षमा कर देनी चाहिए। ऐसा करने से संयम आराधना होती है। २. चम्पाकुमारनन्दी या अनङ्गसेन दृष्टान्त चंपाकुमारनंदी पंचऽच्छर थेरनयण दुमऽवलए । 'विह पासणया सावग इंगिणि उववाय णदिसरे ।१९३।। बोहण पडिमा उदयण पभावउप्याय देवदत्ताते । मरणुयवाए तायस, ण यणं तह भीसणा समणा ।।९४।। गंधार गिरी देवय, पडिमा गुलिया गिलाण पडियरेण । पज्जोयहरण दोक्खर रण गहणा मेऽज्ज ओसवणा ।।९५।। दासो दासीवतितो छत्तट्टिय जो घरे य वत्थव्वो । आणं कोवेमाणो हंतव्यो बंधियव्वो य ।।९६।। जम्बूद्वीप में चम्पा नगरी निवासी स्वर्णकार कुमारनन्दी अत्यन्त स्त्री-लोलुप था। रूपवती कन्या दिखाई पड़ने पर धन देकर उससे विवाह कर लेता था, इस तरह उसने पाँच सौ स्त्रियों से विवाह किया था। मनुष्यभोग भोगते हुए वह जीवन यापन कर रहा था। इधर पञ्चशैल नाम के द्वीप पर विद्युन्माली नामक यक्ष रहता था। हासा और प्रभासा उसकी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525029
Book TitleSramana 1997 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshok Kumar Singh
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year1997
Total Pages130
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size5 MB
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