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(८७)
सभी ओर वे भय से हैं आक्रांत जो प्रमत्त हैं !
(८८)
सम्यक दर्शन
ज्ञान, चरित्र- तीनों उत्तम मित्र
(८९)
सात रंग की
भंगिमाएँ सात, सभी सच हैं!
(९०)
साथी सुख दुःख में कोई देता नहीं दिलासा!
: १२ :
औं'
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( ९१ )
सुख का अर्थी भोगे दुःख केवल, क्या अनर्थ है?
(९२)
सुख हमारे, भागती सी शाम की
परछाइयाँ !
(९३)
सोने की हो, या लोहे की, यदि बेड़ी
है, बाँधेगी ही
(९४)
स्वर्ग को भी
जो करे कलवित, नरक, हिंसा
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