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________________ १२६ : श्रमण/जनवरी-मार्च/१९९७ ___'देवेन्द्र भारती' (मासिक पत्रिका), अगस्त-सितम्बर १९९६, तप, पर्युषण अंक, सम्पादक - श्रीचन्द सुराना 'सरस', प्रकाशक-श्री तारण गुरु जैन ग्रन्थालय, गुरु पुष्कर मार्ग उदयपुर-१। इस पत्रिका के तप अंक में आचार्य श्री देवेन्द्र मनि जी के आलेख संग्रहीत हैं। उन्होंने तपसम्बन्धी विविध आयामों पर प्रकाश डाला है। प्रस्तुत पत्रिका के पर्युषण अंक में पर्युषण शब्द एवं पर्व के विविध आयामों का विश्लेषण बड़े सहज एवं सुन्दर ढंग से किया है। डॉ० जयकृष्ण त्रिपाठी 'मगध का गौरव पुरुष', लेखक-आचार्य श्री देवेन्द्र मुनि, सम्पादक-स्व०ज्ञान भारिल्ल, प्रकाशक-श्री तारक गुरु जैन ग्रन्थालय, गुरु पुष्कर मार्ग, उदयपुर-१, प्रथमावृत्ति सितम्बर-१९९६, आकार-डिमाई, पेपर बैक, पृष्ठ-२४०, मूल्य-५० रुपये। आचार्य श्री देवेन्द्र मुनि जी द्वारा लिखित मगध का गौरव पुरुष एक दीर्घकाय ऐतिहासिक उपन्यास है। सम्राट् श्रेणिक एक ऐतिहासिक पुरुष है। जैन एवं बौद्ध साहित्य में इसका उल्लेख प्रचुर मात्रा में उपलब्ध है। जहाँ बौद्ध ग्रन्थों विनय-पिटक, दीघ-निकाय, अट्ठ-कथा आदि में श्रेणिक बिम्बिसार को बुद्ध का उपासक और भक्त रूप में प्रदर्शित किया गया है। वहीं जैनागम एवं पश्चाद्वर्ती ग्रन्थों में श्रेणिक भंभासार नाम से विख्यात है। उसे तीर्थंकर महावीर का परम उपासक, सम्यक्दृष्टि, निग्रंथ और श्रमणोपासक बताया गया है। ज्ञाताधर्मकथा, अन्तकृद्दशा, निरयावलिका तथा अनुत्तरोपपातिकदशा आदि प्राचीन जैनागमों में श्रेणिक की जीवन सम्बन्धी घटनाओं से ऐसा प्रतीत होता है कि ये महावीर से जुड़े हैं। पाश्चात्त्य ऐतिहासिकों ने बौद्ध-ग्रन्थों के प्रमाणों के आधार पर श्रेणिक को बौद्धधर्म का अनुयायी स्वीकार किया है। कुछ भारतीय इतिहासकारों ने भी उन्हीं का अनुकरण किया है किन्तु गहन अध्ययन करने के पश्चात् यह सिद्ध हो चुका है कि वे महावीर के परमभक्त थे। यद्यपि सम्राट श्रेणिक और महामन्त्री अभयकुमार का चरित्र इतना महान एवं घटना प्रधान है कि इस पर अनेक उपन्यास लिखे जा सकते हैं किन्तु आचार्यश्री ने अपनी सशक्त लेखनी के माध्यम से सभी प्रमुख घटनाओं को समेटकर गागर में सागर भरने वाली बात को चरितार्थ किया है। आचार्य श्री की लेखन-कला के सम्मुख मैं विनत हूँ, साथ ही भारिल्ल जी ने इस उपन्यास का बड़ी सजगता से सम्पादन कर इसमें चार चाँद लगा दिये हैं। पुस्तक का मुद्रण-कार्य निर्दोष एवं आवरण सुन्दर है। डॉ० जयकृष्ण त्रिपाठी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525029
Book TitleSramana 1997 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshok Kumar Singh
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year1997
Total Pages130
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size5 MB
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