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________________ ५० : श्रमण/जुलाई-सितम्बर/१९९६ ___ भारतीय-दार्शनिक सम्प्रदायों में जैनदर्शन का अपना विशिष्ट स्थान है। जैन दर्शन “सत्य और अहिंसा' पर विशेष महत्त्व देता है और इसका आधार उनका महत्त्वपूर्ण दार्शनिक विचार ‘अनेकान्तवाद' है। जैनों के अनुसार कोई भी तात्त्विक दृष्टि ऐकान्तिक नहीं हो सकती। प्रत्येक तत्त्व में अनेकरूपता स्वभावतः होनी चाहिए और कोई भी दृष्टि उन सबका एक साथ तात्त्विक प्रतिपादन नहीं कर सकती। 'अनन्तधर्मात्मकं वस्तु' (स्याद्वादमंजरी २२ की टीका) इसी पर आधारित है जिसे 'अनेकान्त-दर्शन' का आधार कहा जा सकता है। अपने अनेकान्तवादी सिद्धान्त के आधार पर जैन दर्शन सभी व्यक्तियों तथा धर्मों को समान आदर देता है। बौद्धिक स्तर पर इस सिद्धान्त को मान लेने से नैतिक और लौकिक व्यवहार में उल्लेखनीय परिवर्तन आ जाता है। चरित्र ही मानव जीवन का सार है। चरित्र के लिए मौलिक आवश्यकता इस बात की है कि मनुष्य एक ओर तो अभिमान से अपने को पृथक् रखे, साथ ही हीन भावना से अपने को बचाये। नैतिक समुत्थान में व्यक्तित्व का समादर एक मौलिक महत्त्व रखता है। जैन-दर्शन का महत्त्व इसी सिद्धान्त के आधार पर है कि उसमें व्यक्तित्व का समादर निहित है। जहाँ व्यक्तित्व का समादर होता है वहाँ स्वभावत: साम्प्रदायिक संकीर्णता, संघर्ष या किसी भी जनजाति, अल्प, वितण्डा आदि असदुपाय में वादिपराजय की प्रवृत्ति नहीं रह सकती। व्यावहारिक जीवन में भी खण्डन के स्थान पर समन्वयात्मक निर्माण की प्रवृत्ति वहाँ रहती है। साध्य की पवित्रता के साथ साधन की पवित्रता का महान आदर्श भी उक्त सिद्धान्त के साथ ही रह सकता है। इस प्रकार अनेकान्त-दर्शन नैतिक उत्कर्ष के साथ-साथ व्यावहारिक शुद्धि के लिए भी जैनदर्शन की एक महान देन है। विचार जगत् का अनेकान्त-दर्शन ही नैतिक जगत् में अहिंसासिद्धान्त का रूप धारण कर लेता है। इसप्रकार भारतीय विचारधारा में अहिंसावाद के रूप में अथवा परमतसहिष्णुता के रूप में अथवा समन्वयात्मक भावना के रूप में जैन-दर्शन की जो देन है उसका प्रभाव गांधी के राजनीतिक चिन्तन पर अवश्य पड़ा है। जैनों के इस अनेकान्त-दृष्टि को ध्यान में रखते हुए यह कहा जा सकता है कि कोई प्रश्न चाहे सामाजिक या राजनीतिक या अन्तर्राष्ट्रीय स्तर का ही क्यों न हो, दृष्टि-भेद के कारण ही सारा मतभेद होता है जो आगे चलकर सभी प्रकार की हिंसात्मक वृत्तियों को जन्म देता है। ___ अत: मेरी दृष्टि में महात्मा गांधी के राजनीतिक चिन्तन को जैन-दार्शनिकों के अनेकान्त दर्शन ने जितना प्रभावित किया है, अन्य कोई भी विचार नहीं। दूसरे के विचारो को आदर एवं सम्मान की दृष्टि से देखना, सभी जीवों का आदर करना, उन्हें दुःख या कष्ट न देना, उनके प्रति प्रेम रखना आदि जो जैनों के सिद्धान्त हैं उसे गांधी ने अपने राजनीतिक-क्षेत्र में बड़ी खूबी से पालन किया है। गांधी का आदर्श-राज्य के रूप में "राम राज्य' की कल्पना तथा 'सत्याग्रह' का सिद्धान्त जैनों के 'सत्य-अहिंसा' सिद्धान्त पर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525027
Book TitleSramana 1996 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshok Kumar Singh
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year1996
Total Pages116
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size6 MB
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