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श्रमण/जुलाई-सितम्बर/१९९६
इस कायोत्सर्ग के काल को महर्षि महेश योगी की भाषा में भावातीत ध्यान कहा जा सकता है। कर्म सिद्धान्त की भाषा में इस काल में पाप कर्मों का पुण्य में संक्रमण व कई कर्मों की निर्जरा सम्भव है। आधुनिक वैज्ञानिक भाषा में यह कहा जा सकता है कि मन, वाणी एवं शरीर को विश्राम मिल गया है, आक्सीजन की खपत कम हो गई है, ब्लडप्रेशर सामान्य होने की दिशा में अग्रसर हो गया है, शरीर के समस्त पों का भटकाव रुकने से शरीर के पुर्जे स्वस्थ मार्ग की ओर बढ़ने लगे हैं। दार्शनिक जे. कृष्णमूर्ति ४ की भाषा में 'alert and effortess' यानी 'सावधान किन्तु प्रयासरहित' अवस्था की उपलब्धि है। आचार्य अमृतचन्द्र की भाषा में विकल्पजाल से रहित साक्षात् अमृत पीने वाली अवस्था है। १५ यह विश्व के ऊपर तैरने वाली अवस्था है जिसमें न तो कर्म किया जा रहा होता है और न ही प्रमाद होता है। १६ अध्यात्म की भाषा में ध्यान,ध्याता एवं ध्येय में अभेदपने की अवस्था है। भक्ति की भाषा में- ‘पापं क्षणात्क्षयमुपैति शरीरभाजां'।१७
यहाँ एक प्रश्न यह उपस्थित हो सकता है कि क्या इस स्तर की सामायिक हमसे सम्भव है? इसका उत्तर यही है कि प्रारम्भ में कठिन होता है। इसमें अभ्यास की आवश्यकता है। प्रारम्भ में विकल्प अधिक आते हैं किन्तु विकल्पों से थोड़ा भी परेशान होने की आवश्यकता नहीं है। जैसे ही लगे कि विकल्प में हम उलझ गये हैं वैसे ही प्रभुनाम के मन्त्र के सहारे पर मन लगाना चाहिए। ज्यों-ज्यों ज्ञाता-द्रष्टा भाव यानी साक्षीभाव विकल्पों के प्रति अपनाते रहेंगे त्यों-त्यों हमारी सामर्थ्य बढ़ती जायेगी। ५ मिनट से प्रारम्भ करते हुए कायोत्सर्ग का काल कुछ महीनों के अभ्यास के बाद २०-२५ मिनट तक बढ़ाया जा सकता है। ऐसा सम्भव है, इस बात की पुष्टि पूर्व वर्णित अमरीकन मेडिकल ऐशोसिएशन की पुस्तक भी करती है।
इतना सब पढ़ने के बाद ऐसा भी किसी को लग सकता है कि ऐसा वर्णन तो मुनियों के लिए सुनने में आता है। गृहस्थ अवस्था में इतना कैसे सम्भव हो सकता है? इसका उत्तर स्वयं अनुभव करके या शास्त्रों से प्राप्त किया जा सकता है। आचार्य समन्तभद्र रत्नकरण्डश्रावकाचार में स्पष्ट रूप से लिखते हैं
सामयिके सारम्भाः परिग्रहा नैव सन्ति सर्वेऽपि । चेलोपसृष्टमुनिरिव, गृही तदा याति यतिभावम् ।।
(रत्नकरण्डश्रावकाचार -१०२) इसका अर्थ यह है कि सामायिक के समय गृहस्थ के आरम्भ एवं परिग्रह नहीं रहते हैं अत: उस समय गृहस्थ भी ऐसे ध्यानस्थ मुनि की तरह हो जाता है, जिस पर किसी ने उपसर्ग किया हो और कपड़े डाल दिए हों। For Private & Personal Use Only
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