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________________ श्रमण/जुलाई-सितम्बर/१९९६ : १०३ शाब्दिक अर्थ तो मुख की शुद्धि है किन्तु इस अर्थ में मन और मस्तिष्क की शुद्धियाँ भी सन्निहित हैं। आचार्य विद्यानन्द मुनि द्वारा प्रस्तुत अक्षर पुञ्ज से इस पुस्तिका का महत्त्व और बढ़ जाता है। डॉ० सुदीप जैन का यह प्रयास सराहनीय है। वे बधाई के पात्र हैं। पुस्तिका का मुद्रण तथा बाहरी रूपरंग सुन्दर हैं। आशा है वाग्दीक्षा पढ़कर पाठकों को प्रसन्नता होगी। ____ डॉ० बशिष्ठ नारायण सिन्हा हूमड़ जैन समाज का सांस्कृतिक इतिहास (भाग-१) प्रधान सम्पादक-डॉ० रामकुमार गुप्त, प्रकाशक-श्री हूमड़ जैन इतिहास शोध समिति, १,सुदर्शन सोसायटी, नारणपुरा, अहमदाबाद-३८००१३, पृ०-२९६, मूल्य-१५०। हूमड़ जैन समाज का सांस्कृतिक इतिहास, यह नाम ही बताता है कि इसमें विवेचित विषय का प्रतिपादन हूमड़ जैन समाज की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि तैयार करने के उद्देश्य से हुआ है। इसी सिलसिले में ईडर की पहाड़ी, खेड़ब्रह्मा, राजा वेणीवत्स आदि की चर्चाएं है। किन्तु विशेष रूप से हमड़ जाति-उत्पत्ति को महत्त्व दिया गया है। लाड क्षत्रियों ने होम द्वारा आयुध त्याग दिया और वे होमायुध (होम+आयुध) कहलाए। कालान्तर में होमायुध शब्द होबाउए, होवाउड्ड, होबाढ, हूँबडु, हूँबड तथा हूँमड के रूप में आ गया। लाड हूमड़ जैन धर्मानुयायी थे। हूमड़ शब्द की व्युत्पत्ति सम्बन्धी एक अन्य मत यह हैं कि बिहार प्रान्त के सूह्य नगर में दिगम्बर साधु रहते थे। वे विहार करते-करते गुजरात पहँच गए और खेडबरा में रहने लगे। वहाँ लाडवणिक रहते थे जिन्होंने जैन साधुओं से प्रभावित होकर जैन धर्म स्वीकार किया तथा एमड़ बन गए। इस तरह यह पुस्तक ऐतिहासिक तथ्यों को उजागर करने के प्रयास में गतिशील है। आशा है यह विभिन्न खोजों के आधार पर हुमड़ समाज का इतिहास स्थापित करके जैन-इतिहास में नया पृष्ठ जोड़ने में सफल होगी। इसके सभी सम्पादक इस महत्त्वपूर्ण कार्य के लिए बधाई के पात्र हैं। पुस्तक का मुद्रण एवं बाह्याकार अच्छा है। डॉ० बशिष्ठ नारायण सिन्हा भारतीय संस्कृति साहित्य में जैन धर्म का योगदान, सम्पादक-डॉ० सुदर्शन लाल जैन एवं अन्य, प्राप्ति स्थान-डॉ० सुदर्शन लाल जैन .१, सेंट्रल स्कूल कॉलोनी, का०हि०वि०वि० वाराणसी-५, प्रथम संस्करण १९९६, पृ०-१३२, आकार डिमाई, मूल्य-२०० रुपये। अखिल भारतीय दिगम्बर जैन विद्वत्परिषद् द्वारा प्रकाशित 'भारतीय संस्कृति एवं साहित्य में जैन धर्म का योगदान' नामक स्मारिका पच्चीस निबन्धों का एक संग्रह है, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525027
Book TitleSramana 1996 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshok Kumar Singh
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year1996
Total Pages116
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size6 MB
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