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श्रमण/अप्रैल-जून/१९९६ :
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होता है कि ग्रन्थकार ने अपने ज्येष्ठ गुरुभ्राता देवानन्दसूरि के अनुरोध पर यह रचना की। इस कार्य में उन्हें अपने एक अन्य गुरुभ्राता यशोभद्रसूरि और शिष्य नरचन्द्रसूरि से भी सहायता प्राप्त हुई। प्रशस्ति में उल्लिखित ग्रन्थकार की गुरु-परम्परा इस प्रकार है :
अभयदेवसूरि
हेमचन्द्रसूरि
विजयसिंहसूरि
श्रीचन्द्रसूरि मुनिचन्द्रसूरि
देवानन्दसूरि
देवप्रभसूरि (पाण्डवचरितमहाकाव्य (पाण्डवचरितमहाकाव्य । की रचना के प्रेरक) के रचनाकार)
यशोभद्रसूरि (ग्रन्थलेखन में सहायक)
नरचन्द्रसूरि
(ग्रन्थलेखन में सहायक) ग्रन्थकार ने ग्रन्थ की प्रशस्ति के अन्तर्गत रचनाकाल का उल्लेख नहीं किया है किन्तु श्री मोहनलाल दलीचंद देसाई ने उपलब्ध अन्य साक्ष्यों के आधार पर इसे वि० सं० १२७०/ई० सन् १२१४ के आस-पास रचित बतलाया है, जो उचित प्रतीत होता है। कथारत्नसागर
यह देवप्रभसूरि के शिष्य प्रसिद्ध ग्रन्थकार नरचन्द्रसूरि की रचना है। इसकी प्रशस्ति में ग्रन्थकार ने अपनी गुरु-परम्परा इस प्रकार दी है :
अभयदेवसूरि हेमचन्द्रसूरि श्रीचन्द्रसूरि मुनिचन्द्रसूरि
देवानन्दसूरि
देवप्रभसूरि
यशोभद्रसूरि
नरचन्द्रसूरि (कथारत्नसागर के रचनाकार) For Private & Personal Use Only
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