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________________ श्रमण/अप्रैल-जून/१९९६ : ३३ हैं। प्रियंगुसुन्दरी सौतों के घर से आये दूत का नाम सुनकर जलभुन जाती है पर अपनी भावना को छुपाकर पारिवारिक सुख-शान्ति को बनाये रखने के लिये सौतों को घर में बुलाती है, उनका स्वागत सत्कार करती है। वेगवती अपने प्रिय पुरुष को पाने के लिए उचित-अनुचित को भूलकर दूसरी स्त्री का वेष धारण करके छलपूर्वक अपने प्रिय को प्राप्त करती है। नारी के चरित्र का उल्लेख करते हुए कहा गया है कि गंगा के बालुकणों, समुद्र की लहरों तथा हिमालय की ऊँचाई को नापना आसान है, लेकिन नारी के हृदय की थाह लेना कठिन है। स्त्रियों को अज्ञानियों के लिये ग्राह्य और ज्ञानियों के लिये त्याज्य कहा है। भार्या चरित्र के शील परीक्षण की दृष्टि से यह कृति अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है। इसमें नारी चरित्र के अनेक पहलू हैं। एक ओर शील की अवहेलना करने वाली नारी का चरित्र है तो दूसरी में पर-पुरुष से विद्वेष रखने वाली नारी की वीरता का दिग्दर्शन होता है जो १२ वर्ष तक कठिन परीक्षायें देकर अपने सतीत्व की रक्षा करती है। नारियों के चरित्र में आई स्वच्छन्दता का भी खुलकर चित्रण किया गया है। पर-पुरुष की इच्छा वाली स्त्रियाँ किस प्रकार दासियों, परिचारिकाओं की सहायता से परपुरुष समागम का साहस कर लेती थीं, वर्णन किया गया है। आचार्य ने गणिका जैसे चरित्र को भी अपने चातुर्य से सम्मानजनक स्थान दिया है। अपना शरीर बेचने वाली स्त्रियाँ भी कुलीन नारियों की तरह जीवन बिताती दीखती हैं। धर्म के प्रति भी उनकी अटूट आस्था है। सन्दर्भ १. वसुदेवहिंडी, पृ० २५३ २. वही, पृ० ७४४ ३. वही, पृ० ५५८ ४. वही, मध्यम खंड, पृ० ५१ ५. वही, पृ० ९८८ ६. वही, पृ० ९४२ ७. वही, पृ० ९३४ ८. वही, पृ० ९३८ ९. वही, मध्यम खंड, पृ० ५२ १०. वसुदेवहिंडी, पृ० ११५१ ११. वही, पृ० ११४६ १२. वही, पृ० ३९६ १३. वही, पृ० ९१७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525026
Book TitleSramana 1996 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshok Kumar Singh
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year1996
Total Pages130
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size6 MB
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